Book Title: Pratapmuni Abhinandan Granth
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Kesar Kastur Swadhyaya Samiti

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Page 272
________________ राजस्थानी रो अस्ति-लाहित्य -श्री अगरचंद नाहटा 'साहित्य वारिधि' भारत आध्यात्म प्रधान देश है, अठे री मस्कृति रो मूल आधार धर्म है। धर्म री व्याख्या अनेक ऋपि मुनिया और विद्वाना भात-भात री करी है, अर्थात् मारत रो धर्म शब्द बहुत व्यापक अर्थ रो द्योतक है। इहलौकिक और पारलौकिक अभ्युदय और निश्रेयस री सारी प्रवृत्तियाँ धर्म मे समावेश हुय जावे कि-नीति और आध्यात्मक रे वीचली सिगली शुभ प्रवृत्तियाँ धर्म मे समाविष्ट हैं। वर्म री चिन्तन प्रधान विचारधारा ने दर्शन केवे हैं, और आचार प्रधान प्रवृत्तियाँ ने धर्म केयो जावे है । इये वास्ते आचार प्रथमोधर्म को सूत्र वाक्य भी मिले है। भारत री आध्यात्मिक साधना प्रणालियो मे ज्ञान, कर्म और भक्ति ये तीन प्रधान है। कर्म मे योग रो भी ममावेश हुयजावे है, "योग कर्मपु कौशलम्" गीता रो आदर्श वाक्य है। ज्ञान, कर्म और भक्ति आ तीना मागा मे अपेक्पा भेद सू कोई केई ने तो दूजाने ऊचो अर आच्छो मार्ग वतावे है । वास्तव ने लोकारी रुचि और योग्यता भिन्न-भिन्न हुवे इये वास्ते धर्म रा मार्ग भी अनेक वताया गया है। आखिर साध्य तो एक है पण साधन अनेक है । जिस तरह केईने कलकत्ते जावणो हुवेतो वीरा रस्ता आपआपरी मविधानसार अलग-अलग अपनायो जा सके । पहुँचने री जगा तो एक ही है। कोई जल्दी और कोई देरी मू, कोई सीधो और कोई घूमफिर पहुच सके हैं, इसी तरह सू मस्तिष्क-प्रधान व्यक्ति ज्ञान ने मुख्यता देवे । छ दर्शना मे वेदान्त ने ज्ञानप्रधान केयो जाते हैं। क्योकि वे दर्शन री मान्यातारे अनुमार ज्ञान विना मुक्ति नहीं मिल सके। इसी तरह हृदय-प्रधान व्यक्ति रे वास्ते भक्तिमार्ग उत्तम बतायो है। भागवत् और वैष्णव धर्म मे भक्ति री प्रधानता है। वारी विचारपारा मे तो मुक्ति सू भी भक्ति ऊ ची है। भगवान सू भी भक्ति ने ज्यादा महत्त्व दियो गयो है । क्योकि भगवान भी भक्त रे वश मे हुवे। क्रियाशील व्यक्ति रे वास्ते योग या कर्ममार्ग ज्यादा उपयुक्त है। गीता रे अनुसार कर्म तो प्रत्येक प्राणी हर समय करतो ही रैवे है । वे से फल री आशक्ति नही राखणी । भगवान उपर पूरी श्रद्धा और भक्ति राखणी । समरपण भाव री प्रधानता राखते हो शुभ प्रवत्तियाँ करते रहणो आत्मोन्नति रो मार्ग है । निसकाम कर्मयोग गीता रो मुख्य सदेश है। साख्य और योग दर्शन री सार व समन्वय ही गीता है। भक्ति व्याख्या भी कई तरह सू करी गई है । भगवान सू विशेप अनुराग रो नाम-भक्ति और जिने के प्रेम भी के मका हाँ । परलौकिक प्रेम सू वो बहुत ऊँचो है। भक्तिभाव अलग-अलग रुचि और योग्यता वाला अलग-अलग ढग सू व्यक्त करे है। और शक्ति रा मुल्य ६ प्रकार बताया गया है। कोई आपने भगवान रो दास माने है । कोई सखा माने है। कोई पत्नी माने हैं। इस तरह रा वहुत रकम रा भाव भक्त लोगा मे पायो जावे है। असल मे आपरे अहकार रो विसर्जन कर भगवान रे सागे एकता स्थापित करणी वारे प्रति पूर्ण समर्पित हुयजाणो ही भक्ति री विशेपता है। भगवान भी अनेक नामा सूऔर अनेक अवतारा रे रूप में माना व पूजा जावे है । वास्ते भक्तिमार्ग

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