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चतुर्थ खण्ड धर्म, दर्शन एव सस्कृति जैन धर्म और जातिवाद | २३६ सारी बातो से यही निष्कर्ष निकला कि-धर्म-साधना में जातिवाद को कुछ भी महत्त्व नही दिया । जातिवाद तो ऊपर का चोला है । महत्त्व है ज्ञान दर्शन चारित्र और आत्मा को छूने वाले वास्तविक सत्य तथ्यो का । जो जातिवाद के वन्धन से सर्वथा निवन्धन और विमुक्त हैं। फिर भले वह आत्मा जैन, बौद्ध, हिंदू, ईसाई, मुस्लिम या पारमी आदि किसी भी चोले मे क्यो न हो। भले जिनका जन्म, भरण-पोपण एव लाड, प्यार, गाव, नगर अथवा हिंद, चीन, अमेरिका, लका आदि किसी भी स्थान मे क्यो न हुआ हो।
____आज जैन समाज और इतर मामाजिक तत्त्व जातिवाद के दल-दल मे उलझे हुए है। जिससे विपमता, विद्वे पता को बढावा मिला है । अतएव जातिवाद के बन्धन को घरेलू कार्यों तक ही सीमित रखना अभीष्ट रहेगा । तिस पर भी अन्य जन समूह के साथ सहयोग-सहानुभूति का सामजस्य होना जरूरी है । धार्मिक क्षेत्र में जातिवाद को ला घसीटना, अपराध माना गया है। वस्तुत धर्म व्यक्तिवादजातिवाद को नहीं देखता, वह जीवात्मा का अन्त करण का अन्वेपण करता है ।
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