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२२२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
पूज्य श्री कुन्दन मल जी म० ,, नाथ राम जी म० , , दौलत राम जी म०
कोटा सम्प्रदाय का उद्गम कोटा सम्प्रदाय आगे चलकर कई शाखाओ मे विभक्त हुई । जिनमे से एक शाखा के अग्रगण्य मुनि एव आचार्यां की शुभ नामावली निम्न है।
(१) श्री हरजी ऋपि जी म० एव जीवराज जी म० (२) पूज्य श्री गुलावचन्द जी म० (गोदाजी म०)
, , फरसुराम जी म० ,, लोकपाल जी म०
,, मयाराम जी म० (महाराम जी म०) ,, दौलतराम जी म. ,, लालचद जी म० , हुक्मीचद जी म० ,, शिवलाल जी म० ,, उदयसागर जी म०
चौथमल जी म०
श्रीलाल जी म० ,, श्री मन्नालाल जी म०
,, श्री खूवचद जी म०
, , श्री महतमल जी म०
पज्य श्री दौलतराम जी म० से पूर्व के पाचो आचार्य के विषय मे प्रामाणिक तथ्य प्राप्त नही हैं । परन्तु आ० श्री दौलतराम जी म० सा० से लेकर पू० श्री सहस्रमल जी म० सा० तक के आचार्यों की जो हने ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है । उसे क्रमश दी जायगी।।
पूज्य श्री दौलतराम जी म. सा० कोटा गज्य के अन्तर्गत 'काला पीपल' गांव व वगैरवाल जाति मे आपका जन्म हुआ था। शव काल धार्मिक संस्कारो मे बीता। वि० म० १८१४ फाल्गुन शुक्ला ५ की मगल वेला मे क्रिया निष्ठ श्रद्धेय आचार्य श्री मयागम जी म० सा० के मान्निव्य मे आपकी दीक्षा सपन्न हुई। प्रखर बुद्धि के कारण नव दीक्षित मुनि ने स्वल्प समय मे ही रत्न त्रय की आशातीत अभिवृद्धि की । जान और क्रिया के सन्दर सगम से जीवन उत्तरोत्तर उन्नतिशील होता रहा । फलस्वरूप सयमी-गुणो से प्रभावित होकर चतुर्विध मघ ने आपको आचार्यपद से शुभालकृत किया।
मुख्य रूप ने कोटा एव पार्श्ववर्ती क्षेत्र आप की विहार स्थली रही है। कारण कि-इन क्षेत्रो मे धर्म-प्रचार की पूर्णत कमी थी। भारी कठिनता को सहन करके आपने उस कमी को दूर किया। पान गोटे में भी अत्यधिक परिपह सहन करने पडे। तथापि आप अपने प्रचार कार्य मे सवल रहे । उच्चतम लाचार-विचार के प्रभाव ने काफी सफलता मिली । अत सरावगी, माहेश्वरी, अग्रवाल, पोर