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चतुर्थ खण्ड धर्म-दर्शन एव सस्कृति विश्वज्योति भगवान महावीर का त्रिपृष्ठभव | १६६ होगी ।११ यह सुनते ही ग्वग्रीव का अन्तर्मानम भय से काप उठा । उसने सुना–प्रजापति राजा के पुत्र वडे ही बलिष्ठ है । परीक्षा करने चण्डमेव दून को वहाँ प्रेपित किया।
__ नराधिपति प्रजापति अपने पुत्र तथा सभासदो के साथ राजसभा मे बैठा था । सगीत की स्वर्ग लहरी व सुमधुर झकार से राजसभा झकृत हो उठी। सभी तन्मय होकर नृत्य तथा सगीत का आनन्द लूट रहे थे। मभी के मनोऽरविन्द प्रसन्नता के मारे नाच रहे थे। ठीक उसी समय एक अभिमानी दूत विना पूर्व सूचित किये ही राज-समा में प्रविष्ट हुआ । राजा ने सभ्रान्त होकर दूत का सुस्वागत किया | सगीत और नृत्य का कार्य स्थगित हुआ और उसका सन्देश सुनने में राजा तल्लीन हो गया।
त्रिपृष्ठ को दूत की उद्दण्डता अखरी | इमने रग मे भग क्यो किया । तत्पश्चात् उन्होने अपने अनुचरो को आदेश दिया कि जब यह दूत यहाँ से प्रस्थान करे तव हमे सूचित करना ।
राजा ने सस्नेह सत्कार पूर्वक दूत को विदा किया। इधर दोनो राजकुमारो को सूचना मिली । उन्होंने जगल मे दूत को पकड़ा और बुरी तरह उसे मारने-पीटने लगे । दूत के जितने भी साथी थे वे सभी भाग छूटे, दूत की खुव पिटाई सुनकर राजा प्रजापति चिन्ता-सिन्धु मे डूब गये । दूत को पुन अपने सानिध्य मे बुलाया और अत्यधिक पारितोपिक प्रदान किया और कहा कि पुत्रो की यह भल अश्वयग्रीव से न कहना । दूत ने राजा की वात स्वीकार की। पर उनके साथी-सहायक जो पहले पहुँच चुके थे, उन्होने सम्पूर्ण वृत्तान्त अश्वग्रीव को अवगत करा दिया | अश्वग्रीव कोपाभिभूत हो उठा। दोनो राजकुमारो को मौत के घाट उतारने का दृढ सकल्प किया ।
तत्पश्चात अश्वग्रीव ने तुङ्गग्रीव क्षेत्र में शालिघान्य की खेती करवायी और कुछ समय के पश्चात् राजा ने प्रजापति के पास दूत को प्रेपित किया । दूत ने आदेश सुनाया कि शालि के खेतो मे एक क्रू रसिंह ने उपद्रव मचा रखा है । वहाँ पर रखवाली करने वालों को काल के गाल मे पहुँचा देता है। सारा क्षेत्र भय से ग्रस्त है, विकट सकट के बादल मण्डरा रहे हैं अत आप वहाँ पहुँच कर सिह से शालिक्षेत्र की सुरक्षा कीजिये । प्रजापति ने अवश्ग्रीव के मनोगत भावों को समझ लिया और पुत्रो से कहा-तुमने दूत के साथ जो व्यवहार किया है उसी का यह परिणाम आया कि वारी न होने पर भी यह आदेश आया है |
प्रजापति स्वय शालिक्षेत्र की ओर प्रस्थान करने के लिए तत्पर हुए। पुत्रो ने प्रार्थना की अभ्यर्थना की—पिताजी | आप मत पधारिये आप ठहर जाइये । हम जायेंगे। इस प्रकार कहकर वे दोनो शालिक्षेत्र की ओर चल पडे । वहाँ जाकर खेत के सरक्षको से पूछा-अन्य राजन्य यहां पर किस प्रकार और किस समय रहते हैं ? उन्होंने निवेदन किया-जब तक-शालि अर्थात् धान्य १क नही जाता है तव
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(क) -त्रिपष्टि० श० पु० १० | १. १२२-१२३ । (ख) आवश्यक चूणि पृ० २३३ ! (क) आवश्यक चणि पृ० २३३ । (ख) अन्येऽरक्षन्नपा सिंह कथकार कियच्चिरम् ।
इति पृप्टास्त्रिपृष्ठेन, शशसु शालिगोपका ॥
-त्रिपप्टि० १० | १ | १३६