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प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
हुए भी स्त्री-पुरुप की दैहिक धारणाओ से बधा रहे और धर्म माधना मे स्त्री-पुरुप का लैगिक मेद मन में वमाये रग्वे । भगवान महावीर ने वाहा-इत्थी ओ वा पुरिसो वा-चाहे स्त्री हो या पुरुष, प्रत्येक में एका ज्योतिर्मय अनन्त शक्ति सम्पन्न आत्म तत्व है, और प्रत्येक उसका पूर्ण विकास कर नकना है, इसलिए धर्म साधना के क्षेत्र में जातीय एव लैंगिक भेद के आधार पर भेद-भाव पैदा करना निराअज्ञान और पाखण्ड है।
इम प्रकार मानव की महत्ता और धम-मावना में समानता का सिद्धान्त भगवान महावीर की एक अद्भुत देन है, जो भारतीय जीवन को ही नहीं, किन्तु विश्व जीवन को भी उपकृत कर रही है। इसी के माय अहिसा का सूक्ष्म एव मनोवैज्ञानिक दर्शन, अपरिग्रह का उच्चतम मामाजिक और आध्यामिक चिंतन तथा अनेकात का श्रेष्ठ दार्शनिक विश्लेपण-विश्व के लिए भगवान महावीर की अविस्मरणीय देन है । पावश्यकता है आज इम देन से मानव समाज अपना कल्याण करने के लिए मच्चे मन से प्रस्तुत हो।