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विश्व को भगवान महावीर की देन
- बहुश्रुत श्री मधुकर मुनि जी
भारतवर्ष की यह सास्कृतिक परम्परा रही हैं कि यहाँ महापुरुप जन्म से पंदा नही होते कितु कर्म से वनते हैं । अपने उदात्त एवं लोकहितकारी आदर्श तथा आचरण के बल पर ही वे पुरुप से महापुरुप की श्रेणी मे पहुचते हैं, आत्मा से महात्मा और परमात्मा तक की मजिल को प्राप्त करते हैं। इमलिए भारतवर्ष के किमी भी महापुरुष के कर्तृत्व पर, उनकी माधना और सिद्धि पर विचार करते समय सबसे पहले उनकी जीवन दृष्टि पर हमारा ध्यान केन्द्रित होता है। स्वय के जीवन के प्रति और विश्वजीवन के प्रति उनका क्या चिन्तन रहा है, किम दृष्टि को मुथ्यता दी है और जीवन जीने की किस विधि पर विशेप बल दिया है - यही महापुरुप के कर्तृत्व और विश्व के लिए उसकी देन को समझने का एक मापदण्ड है।
__भगवान महावीर की २५वी निर्वाण शताब्दी के पावन प्रसग पर आज हमारे समक्ष यह प्रश्न पुन उभर कर आया है कि २५०० वष की इस सुदीर्य काल यात्रा मे भी जिस महापुरुप की स्मृतियाँ और सस्तुतियां मानवता के लिए उपकारक और पथ दर्शक बनी हुई है, उस महापुरुष की आखिर कौनसी विशिष्ट देन है जिससे मानवता आज निराशा की अन्धकागच्छन्न निशा में भी प्रकाश प्राप्त करने की आशा लिए हुए हैं।
__भगवान महावीर स्वय ही विश्व के लिए एक देन थे—यह कहने मे कोई अन्युक्ति नहीं होगी। उनके जीवन के कण-कण मे और उनके उपदेशो के पद-पद मे मानवता के प्रति असीम प्रेम, करणा और उसके अभ्युदय की अनन्त अभिलापा छलक रही है । और इसी जीवन-धारा मे उन्होंने जो कुछ किया कहा वह सभी मानवता के लिए एक प्रकाश पुज है, एक अमूल्य देन है।
मानव सत्ता की महत्ता भगवान महावीर से पूर्व के भारतीय चिंतन मे मानव की महत्ता मानते हुए भी उसे ईश्वर या किसी अज्ञात शक्ति का दास स्वीकार कर लिया गया था। मानव ईश्वर के हाथ की कठपुतली समझी जाती थी, और उस ईश्वर के नाम पर मानव के विभिन्न रूप, विभिन्न खण्ड निर्मित हो गये थे। पहली वात-मानली गई थी कि ससार मे जो कुछ भी हो रहा है या होने वाला है वह मव ईश्वर की इच्छा का ही फ्ल है । मानव तो मात्र एक कठपुतली है, अभिनेता तो ईश्वर है, वही इसे अपनी इच्छानुमार नचाता है।
दूसरी वात्त- मानव-मानव मे ही एक गहरी भेद रेखा खीच दी गई थी, कुछ मनुप्य ईश्वर के प्रतिनिधि बन गये, कुछ उनके दलाल और वाकी सब उन ईश्वरीय एजेन्टो के उपायक । ब्राह्मण चाहे सा भी हो वह पूज्य और गुरु है, शूद्र चाहे कितना ही पवित्र हो, उसे स्वय को पविग मानने का अधि