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चतुर्थ खण्ड . धर्म, दर्शन एवं सस्कृति . तीर्थंकर महावीर । २०३
शंखनाद क्रान्ति का इस प्रकार क्रान्ति का प्रथम शखनाद उन्होंने तव किया जव घरवार, राजपाट तथा सामारिक सुख वैभव को अपनी इच्छा से छोडा । उनका क्रान्तिकारी स्वर उससे भी पहले दो और अवसरो पर सुनाई दिया । मा त्रिशला की स्वाभाविक इच्छा थी कि उनका लडका घर-गृहस्थी का होकर रहे और इस सम्बन्ध मे जब उन्होने अपने पुत्र से चर्चा की तो जानते हैं उन्होने क्या कहा ? उन्होंने कहा, "मा, देख नहीं रही हो कि ससार कितना दुखी है और धर्म का कितना ह्रास हो रहा है । लोग माया मोह मे फंसे हैं । लोकहित के लिए इस समय सबसे अधिक आवश्यकता धर्म के प्रचार एव प्रसार की है।
___मा ने समझाते हुए कहा, "मैं जानती हूँ, तुम्हारा जन्म ससार के कल्याण के लिए हुआ है. पर अभी तुम्हारी उम्र है कि तुम घर गृहस्थी मे पडो।"
___ महावीर का क्रान्तिकारी म्वर और दृढ हो उठा-'इम देह का क्या भरोसा है ? तुम कुछ भी कहो, मुझसे ऐसा नहीं होगा, नहीं होगा।"
जीवन-धर्म जीवन-मर्म यह भापा मामान्य जन की नही है । ये स्वर है उस व्यक्ति के जो जानता है कि इस नश्वर जीवन की सार्थकता इस बात मे नही है कि वह जग की मोह-माया मे लिप्त रहकर अपनी ऊर्जा को नष्ट कर दे, बल्कि इस बात मे है कि वह जीवन के धर्म को और मर्म को समझे, उस मार्ग पर चलकर अपने को कृतार्थ करे ।
धर्म एक प्राण शक्ति महावीर की क्रान्ति का दूसरा क्षेत्र था समाज । ढाई हजार वर्ष पहले का समय था जवकि समाज भ्रष्टाचार तथा अन्धविश्वासो मे फंस गया था। सड़ी गली रूढियां समाज मे घर कर गयी थी, मनुष्य के आचरण को ऊंचा उठाने वाले नियम छिन्न-भिन्न हो गये थे, मनुष्य स्वार्थ के वशीभूत होकर बुरे से बुरा काम कर सकते थे, धर्म की जडें हिल गयी थी, मानव सत्ता का दास हो चुका था । भाई चारे की भावना तिरोहित हो गई थी, चोरो वर्णों के आधार पर समाज मे ऊंच-नीच के दर्जे बन गये थे, स्त्रिया मनुष्य की सम्पत्ति मानी जाती थी, उन्हें आगे बढाने के अवसर नहीं थे, यज्ञो मे पशु बलि दी जाती थी निर्दयता से पशुओ का हनन किया जाता था, हिंसा का सर्वत्र वोल-चाला था । वास्तव मे बात यह थी, कि लोग धर्म के वाह्य स्प को अधिक महत्त्व देने लगे थे। धर्म की आत्मा जाती रही थी। कर्म काण्ड मे फस जाने के कारण लोग धर्म के वास्तविक रूप को भूल गये थे । वे जादू, टोने, टोटके, भूत-प्रेत आदि के अघ-विश्वामो मे बुरी तरह जकड गये थे।
वडी लकोर-छोटी लकीर महावीर ने समाज की इस दुरवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया । जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण रचनात्मक था । वह बडी लकीर को छोटा सिद्ध करने के पक्षपाती थे । उन्होंने किसी भी मान्यता का खण्डन नहीं किया, न किसी को तर्क द्वारा परास्त करने का प्रयत्न किया । उन्होने जीवन के सही मूल्यो की प्रस्थापना की । युग प्रवाह के विरुद्ध तैरना सुगम नही होता । भयकर हिंसा के बीच महावीर स्वामी ने घोप किया--(अहिंसा परमो धर्म ) अहिंमा परम धर्म है । वस्तुत यह बुनियादी बात थी, क्योकि जो व्यक्ति हिंसा करता है वह बहुत सी व्याधियो का शिकार बन जाता है। उसमे असत्याचरण, असयम,