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प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
पुणिया श्रावक ने भी अपनी समस्त धन राशि को जनहित में व्यय कर केवल निर्जीव शिल्प कला (मूत कातने) के वल पर ही अपना धार्मिक जीवन कितना आदर्श मय बनाया था? इसी प्रकार आर्द्र कुमार की धर्मपत्नी ने भी जीवनयापन किया था। आज इस मिटान्त का पुन आगमन हुआ है। आज सर्वत्र एक ही आवाज प्रसारित हो रही है "आराम हराम है ' अन परिश्रम कगे। परन्तु भगवान आदिनाथ और महावीर आदि तीर्थकरो ने तो कई शताब्दियो पहले ही ६८ तथा ७२ कलामो के ममीचीन पाठ मानव-समाज को पढा चुके हैं । शिल्प कला भी जिसके अन्तर्भूत है।
साहित्य सगीत कला विहीन साक्षात् पशु पुच्छ विषाण हीन । तृण न खादन्नपि जीवमान-स्तद् भागधेय परम पशुनाम् ।।
-~नीतिशतक मानव को अवश्यमेव शिल्पज्ञ होना ही चाहिए। चूंकि साहित्य और क्ला विहीन मानव शोभा का पात्र नहीं बनता है। वल्कि पशु की श्रेणी में गिना जाता है । अतएव शिल्प निधि का जीवन मे एक महत्वपूर्ण स्थान पाया जाता है । वास्तव मे कवि का कथन अक्षरश सत्य है।
"हो सेवामय जीविका, बनो परिश्रमी धाम ।। मुफ्त-खोर बनना न कभी, करते रहना काम ।।"
धन-निधि धन निधि का महत्व तो स्वयमेव सिद्ध है । भूतकाल मे भी था भविष्य में रहेगा और वर्तमान मे तो कहना ही वया । आज सर्वत्र धन ही धन का बोल वाला है। मानव चाहे कैसा ही क्यो न हो, परन्तु धन के प्रताप से उसके समरत दोप, दुर्गुण ढक जाते हैं। धन के पीछे मानव की वाह-वाह और पूजा प्रतिष्ठा होती है।
“यस्यास्ति वित्त स नर फुलीन, स पण्डित स श्रुतवान् गुणज्ञ ।
स एव वक्ता स च दर्शनीय सर्वे गुणा काचनमाश्रयन्ति ।। अर्थात् जिसके पास धन है-वही मानव सर्व गुणसम्पन्न समझा जाता है। क्योकि सुवर्ण (धन) मे ही सर्व गुणो का निवास माना गया है ।
आज धन का स्वामी गृहस्थ नही बल्कि गृहस्थ का स्वामी धन है। तभी तो अहनिस मानव धन स्पी स्वामी की खोज में भटकता है। भूख, प्यास, मर्दी, गर्मी आदि को सहन करता है । धन की प्राप्ति हो जाने पर उमकी निगरानी मे ही रत रहता है। और धर्म-ध्यान आदि आत्मसम्वन्धी सर्व क्रियाओ को भूल जाता है। न खर्च करता है न खाता है एतदर्थ जन साधारण की दृष्टि आज बडे-बड़े सेठियो पर जा पडी है। जिसका न उचित उपयोग और न सही सहयोग । हाँ, साधु के पास ज्ञाननिधि और गहम्थ के पास धन निधि अनिवार्य है। परन्तु उसका उपयोग होते ही रहना चाहिए । नदी का पानी बहता हुआ ही भला लगता है । एक मानव विचारा धन के अभाव मे भयकर से भयकर द खो का सामना करता है और एक मानव के पास अपार धनराशि एकत्रित है। आज का युग इतनी विपमता कैसे सहन करेगा?
"भूखी दुनियां अब न सहेगी, धन और धरती वट के रहेगी।"