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१८४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य
रहेगी, वहाँ तक ससार है और ससार है तो कर्म है और कर्म है तो ससार का सद्भाव है। क्योकिसमार और कर्मों का अन्योन्य सम्बध है ।
कम और साम्यवादयदि अमुक व्यक्ति अथवा अमुकवादी यह कहे कि मैं कर्मविपाक को नही मानता है। कर्म विपाक किस चिडिया का नाम है । मेरो डिक्सनरी मे है ही नही और न मैं मानता ही हैं । मानव यो भी कहते हैं कि --साम्यवादी शासक कर्म अर्थात् पुण्य-पाप जनित विपाक स्वीकार नहीं करते हुए भी धनी-निर्धनी को समान स्टेज पर लाने मे प्रयत्नशील है और उद्यम परिश्रम को ही प्रधान मानते हैं।
यदि ऐसी उनकी मान्यता है तो नि सदेह वे वादी मिथ्यारोग से ग्रसित बने हुए अज्ञान अटवी मे भटक रहे हैं । कर्म विपाक को नही मानते हैं तो फिर उनके शासन में एक सुखी तो एक दुखी, एक लूला तो एक लगडा क्यो ? एक महल-मोटर-कारो मे मौज कर रहा है तो दूसरा रोटीरुपयो के लिए दर-दर का दास क्यो? एक के भाग्य मे खान-पान-परिधान वढिया से वढिया उपलब्ध है तो दूसरे भाई के तकदीर मे वही लूखी-सूखी-वासी रोटी एव फटे-टटे वस्त्र। एक के रग-रूप-स्वर मे एव आचार-व्यवहार पर ससारी समूह मत्र मुग्ध वनकर सैकडो हजारो रुपये न्योछावर कर देते है तो दूसरे भाई के लिए वे मानव देना तो दूर रहा उसके वचन भी कानो से सुनना पसद नही करते हैं, वे अपनी फूटी आंखो से भी उसको देखना पसद नही करते हैं । इस प्रकार एक का नाम सुव्याति मे तो दूसरे का नाम कुख्याति मे ।
क्या उपरोक्त उतार-चढाव एव ऊंच-नीच का वैपम्य साम्यवादी, पूंजीवादी एव तटस्थवादी जनतत्रो मे नही है ? स्वीकार करना ही पडेगा । क्योकि इस प्रकार के व्यवधान को साम्यवादी तो क्या परतु इन्द्र भी मिटाने में असमर्थ माना गया है । भले कम्युनिज्म चद-चाँदी-सोने के टुकडो में जनता को एक समान कर दे। किन्तु शारीरिक-प्राकृतिक अन्तर को साम्यवादी कैसे मिटायेगे ? इस अन्तर को भ० महावीर ने शुभाशुभ कर्मविपाक सज्ञा से ससारी जीवो को सम्बोधित करते हुए कहा है
सुच्चिणा फम्मा सुच्चिणफला भवति । दुच्चिवणा कम्मा दुच्चिणफला भवति ।।
कर्म कर्ता के अनुगामीविश्व वाटिका मे जितने भी वाद, मत, पथ एव ग्रथ है वे सभी कर्म-विपाक की सत्ता से परित है। कर्म फिलोसफी को स्वीकार करना ही पडता है । हाँ, कोई किस रूप मे और कोई किस रूप में परन्तु कर्मसत्ता स्वीकार किये विना छुटकारा है कहाँ ? आगम मे कहा
"फत्तारमेव अणुजाई कम्म"
-उत्तरा० सू० अ० १३ गा० २३ जैसे छाया देहधारी के पीछे भागी आती है उसी तरह कर्म दलिक भी कर्ता के पीछे भागे आते हैं। भले ही वह आत्मा स्वर्ग-नरक अथवा और कही पर भी रहे । परन्तु परिपक्व उदयकाल आने पर कर्म उन्हें खोज निकालते हैं । क्योकि