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१७६ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
देश ममाज भी इन्ही सपूतो के बल-वुद्धि और विद्या द्वारा ही ऋद्धि-सिद्धि एव सर्व आवश्यकताओ से सम्पन्न हो उठेगे । तभी तो भारतीय कवि की भाव वीणा गूंज उठती है।
___"पूत-सपूत तो क्यो धन सचे' आज, अमेरिका, रमिया, इ गलैण्ड और जापान आदि ऐश्वर्य सम्पन्न समझे जाते है । और भौतिक उन्नति मे होडा-होड लगा रहे है। इस उन्नति मे उन्ही देशो के सपूतो के भरसक परिश्रम का ही फल है। भारत धर्म-प्रधान देश के नाम से विख्यात है। इसमे भारत माता के लाडले उन त्यागी ऋपि मुनियो की कृपा का ही सुफल कहा जायगा । हा तो प्रत्येक देश और समाज के उत्थान-पतन एव उतार-चढाव का उत्तरदायित्व भावी सतान पर ही निर्भर रहता है।
मातृभक्त चाणक्य पाठशाला से घर आया और विना कहे माता के पैर एव हाथो को दबाने लगा। क्योकि माता ने अधिक परिश्रम कर डाला था। एकाएक उदासीनाकृति को देखकर चाणक्य वोला-"आज चेहरा उदास क्यो माता? क्या किसी से लडाई हुई है?"
"नही वेटा ।" "तो क्या कारण ?"
वेटा । तू इस समय मेरी कितनी भक्ति करता है। वास्तव मे तू मातृभक्ति के सर्वथा योग्य है किन्तु
"किन्तु क्या ? साफ-साफ मुझे समझा | वर्ना लङगा" ?
वेटा । तेरे ये जो दो दाँत वाहर निकले हुए हैं। इन दोनो के प्रभाव से तू बहुत बडा आदमी बनेगा । ऐसा ज्योतिपियो का अभिमत है। फिर तू मुझे भूल जायगा। जैसी आज मेरी सेवा कर रहा है। वैसी सेवा फिर नही कर पायेगा । उदासीनता का यही कारण है वेटा ।
चुपचाप चाणक्य मकान के पिछवाडे मे पहुचा । और आव देखा न ताव उन दोनो दातो को उखाद फेंके।
रक्तधारा बह रही थी । माता के पवित्र पैरो मे नत-मस्तक हुआ। चौक कर माता वोली-यह क्या ? खून खच्चर किसने किया?
माता तेरो उदासीनता का जो कारण था उसे मेने जड-मूल से खत्म कर दिया है । मातभक्ति के वाधक तत्वो को मिटाना ही मै ठीक मानता हूँ । इसलिये यह कार्य मैने ही किया है। अब तेरी भक्ति में बाधा नहीं पडेगी । तुझे अव सतोप भी हो जायगा।
___ मातृभक्त के उद्गारो को सुनकर माता फूली नही समा रही थी। कालान्तर मे वही चाणक्य मत्री पद के योग्य बना है । जिसने "चाणक्य नीति" नामक ग्रन्थ लिखा है।
कितनेक मानव वालको के जीवन से खिलवाड और उपेक्षा कर बैठते हैं । परन्तु उन्हे यह ध्यान नहीं कि विन्दु मे मिन्यु बनता है। वट वृक्ष का एक छोटा सा वीज कालान्तर मे एक विशालकाय विटप वन जाता है। यही स्थिति पुत्र की भी समझनी चाहिए। इन्ही पुत्रो मे भगवान महावीर, वुद्ध, राम, कृष्ण गाधी और नेहरू आदि छिपे हुए हैं । अतएव सुविनीत सतति को अपनी भावी निधी समझकर उनकी देख भाल तथा उन्हे सुसस्कारित करना देश समाज के कर्णधारो का एव उनके माता पिता का प्रथम कर्तव्य है।