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पंचनिधि माहात्म्य
यह व्याख्यान काफी वर्षों पुराना है। सम्वत् २०१७ का वर्षावास रामपुरा था। उस वक्त आप द्वारा श्री स्थानांग सून का तात्विक एव समन्वयात्मक विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा था। श्रोता गण काफी चाव से श्रवणार्थ उपस्थित हुमा करते थे। सलिल प्रवाह की तरह गुरु प्रवर के वाणी का शीतलमन्द-सुगन्ध प्रवाह श्रोताओं के हृदय को छूता हुआ निर्वन्धन के रूप मे यो ही चला जा रहा था। तत्पश्चात् कुछेक व्याख्यान अवश्य सहित किये गये थे। किन्तु असावधानी को बदौलत उनमे से पचनिधि नामक यह एक व्याख्यान ही हमे मिल पाया है। सचमुच ही व्याख्यान के भावार्थ मानव के अन्तरग जीवन को स्पर्श करता है । पढिए और मनन कीजिए ।
__ -सम्पादक] प्यारे सज्जनो।
आप के सामने काफी दिनो से स्थानाग सूत्र के प्रवचन हो रहे है । इस सूत्र का दायरा बहुत विशाल एव गहन-गभीर रहा है। वक्ता एव श्रोतागण को बोलने की एव समझने सुनने की काफी गुजाइश रही है। पचनिधि सम्बन्धित आज मै आप से कुछ कहूगा । यह विपय मानव के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन को स्पर्श करता है । 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" सूत्र मे नवनिधि के नाम एव विस्तृत वर्णन मिलता है। जैसा कि- उवगया णवणिहीओ त जहा-नेसप्पेणिही, पडुअए णिही, पिगलए णिही, सम्बरयणे णिही, महपउमे णिही सखणिही।" यहाँ मेरा अभिप्राय नवनिधि से नही किन्तु पचनिधि से है।
निधि का अर्थ है-खजाना, कोप, भण्डार आदि-आदि । आज का मानव केवल चांदी स्वर्ण और रुपयो को ही प्रधान निधि स्वीकार करता है। ओर वह फिर इस ऐश्वर्य प्राप्ति के पीछे इधरउधर भटकता और धक्का खाता है। अधिक अतुल परिश्रम भी करता है । नही करने योग्य अमानुषिक कृत्यो को भी कर बैठता है। यहाँ तक कि इज्जत आवरु को भी मिट्टी में मिला देता है । तथापि वह अन्धा मानव पुण्य के अभाव मे इच्छित निधि (खजाना) को प्राप्त करने मे विफल ही रहता है।
म० महावीर ने धनसम्पति को ही मुख्य निधि की सज्ञा नही दी। सूत्र स्थानाग मे पाँच प्रकार की निधि का सुन्दर सरल वर्णन किया गया है। "पणिही पण्णत्ता त जहा-पुत्तणिही, मित्तणिही, सिप्पणिही धणणिही, धान्नणिही ।"
पुत्रनिधि पुत्र की गणना भी निधि में की गई है सो उचित ही है। क्यो कि आज के ये होनहार वालक (सपूत) कालान्तर मे राष्ट्र, समाज और धर्म के पालक एव रक्षक बनेगें।.राष्ट्र, समाज और धर्म रूपी विशाल रथ इन्ही सपूतो के कधो पर विकास के विराट मार्ग को पार करेगा । दीन-हीन गरीव