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१७२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ होगी। इस भय से होने वाले वैराग्य को-नरक-भय वैराग्य कहते है। और भी अनेक भय कारणो से वैराग्य होता है, ये भय के सर्व कारण दुख से होने वाले वैराग्य की कोटि मे आते हैं।
मोह-गमित वैराग्यकिमी मानव को अपने माता-पिता पुत्र आदि सगे-सम्बन्धियो पर घनिष्ठ प्रेम या । परन्तु "जो आया सो जायगा, राजा रक फकीर", इस युक्ति के अनुसार कुछ ही दिनों के बाद वह प्यारी अथवा वह प्यारा काल के गाल मे चला जा रहा । मोह के वश आतुर होकर अव यह पुन -पुन आर्तरौद्र ध्यान करता हुआ ऑसू वरसाता है और सिर पीटता है । परन्तु अन्ततोगत्वा काल के सामने निराश ही होना पड़ा। अव उमका सासारिक कारोवार मे दिल दिमाग नहीं लगता है । पागल सा वना हुआ रात-दिन उसकी स्मृति मे अन्दर का अन्दर ही सूखा जा रहा है, न खाने का, न पीने का पीर न वस्त्र पहनने का ध्यान है।
कुछ समय बाद किंचित मोह का नशा उतरा, तव विचार करने लगा कि-हाय | यह ससार ही ऐसा है वास्तव मे"कौन है तेरा, तू है किसका, आंख खोलकर जोय ।
तेरा अपना यहाँ नहीं कोय ॥ इस प्रकार वैराग्यमय विचारो की धारा मे वहते हुए जो भाव उमगते है, उसे मोह-गभित वैराग्य कहा जाता है । यह वैराग्य मध्यम कोटि का है । एक कवि ने कहा हैनारी मुई घर सम्पति नासी । मुड मुडाए भए सन्यासी ॥
ज्ञानभित वैराग्यमे कौन हू, आया कहां से रूप क्या मेरा सही।
किस हेतु यह सम्बन्ध है ? रखू इसे अथवा नहीं । यदि शान्ति और विवेक पूर्वक यह विचार कभी किया।
सिद्धान्त आत्मज्ञान का तो सार सारा पा लिया ।। आत्मा वास्तव मे चेतन स्वरूप, अनन्त ज्ञान विज्ञान शक्ति का स्वामी है। आत्मा शरीर नही शरीर आत्मा नही । दोनो भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले हैं। एक अविनाश, अविकार और अविध्वस स्वभाव वाला है तो दूसरा सडन-गलन विध्वस स्वभाव वाला है । मोक्ष के सर्वोत्तम सुरखो को शरीर नही, आत्माराम ही प्राप्त करने वाला है। परन्तु घने कर्मों की वजह से दस शुद्ध चैतन्य ने ससार परिभ्रमण किया है और कर रहा है। लेकिन भविप्य मे इसे गत्यनुगति मे भटकना न पडे इसका इलाज अवश्यमेव मुझे कर लेना चाहिये । कही ऐसा न हो कि-यह आत्मा किमी योनि विशेप मे जा गिरे जहाँ देव, गरु. धर्म, रत्नत्रय की प्राप्ति होना अत्यन्त दुर्लभ हो जाय । जैसे भ० ऋपभोवाच---
सवुज्झह किं न बुज्झह, सबोही खलु पेच्च दुल्लहा।
णो हुवणमति राइओ, नो सुलभ पुणरविजीविय ॥ हे पुत्रो । सत् वोध रूपी धर्म को प्राप्त करो । सब तरह से सुविधा होते हुए भी धर्म को प्राप्त क्यो नही करते ? अगर मानव जन्म मे धर्म वोध प्राप्त न किया तो फिर धर्म वोध प्राप्त होना बहुत कठिन है। गया हुआ समय तुम्हारे लिये वापस लौटकर नही आने वाला है और न मानव जीवन ही सुलभता से मिलने वाला है।