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सच्चे मित्र की परख
'सच्चे मित्र की परख' यह गुरुदेव का प्रेरक प्रवचन मानव समाज को सकेत दे रहा है कि- भौतिकवस्तु भले कितनी भी सुन्दरतम एव विपुल मात्रा मे तुम्हारे पास क्यो न हो; तथापि तुम्हारी रक्षा नहीं हो पावेगी चू कि--जड वस्तु स्वय पराधीन व परिवर्तनशील है और आत्मिक बन्धु आत्मा का धर्म है । वह मृत्यु रूपी गीदड से बचाने वाला और सदैव साय निभाने वाला है। इन्हीं विस्तृत भाव व्यजनाओ का दिग्दर्शन निम्न प्रवचन मे है । पढ़िए
सपादक] सज्जनो।
विश्व के समस्त पशु-पक्षियो को अपेक्षा मित्र की अधिकाधिक जररत मानव समाज के लिए रही है । मित्र-महयोगी विना मानव का जीना दुष्कर माना गया है। क्योकि-भौतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एव राजनैतिक आदि सभी क्षेत्रो मे सुहृदयी की परमावश्यकता सर्व विदित है । कहा भी हैन वृत्ति न च वान्धव" अर्थात् जहाँ जीवनोपयोगी वृत्ति और हित चिन्तक न रहते हो, वहाँ बुद्धिजीवी को वास करना उचित नही है-तत्र वासो न कारयेत्” । कारण कि मानव को जगतीनल का सर्वोत्तम बुद्धि का धनी-मानी माना गया है । वस्तुत उसके वलिप्ट कधो पर विविध प्रकार के उत्तरदायित्व लादे हुए हैं।
__ कई प्रकार की योजनाएं तो मानव के मन-मस्तिष्क से ही उद्भव होती है। और मानव के मन-मस्तिष्क की अनोखी सूझ-बूझ से ही वे योजनाएं साकार होती है। उपर्युक्त कार्यों की सफलतासवलता मे मलाह दे, सहयोग दे, एव प्रशस्त मार्गदर्शन भी दे । इस कारण पग-पग और डग-डग पर आत्म-विश्वास के साथ-साथ साथी के विश्वास की भी चाहना सदैव बनी रही है। वह विश्वास सही मित्र के विना अन्यत्र दुष्प्राप्य माना गया है। अतएव मार्गदर्शन एव सलाह-सबल ठीक मिल जाने पर दुल्ह मार्ग-मजिल को भी हंसी-खुशी और सुगमता-सुविधा के साथ पार कर ली जाती है। वरन् अकेले उस मार्ग को तय करने मे पैर लखडाने की सभावना बनी रहती है। इसलिये सखा-सहयोग की जरूरत प्रत्येक मेघावी मानव के लिए सर्वथा उचित है।
अब प्रश्न यही है कि- सच्चे मित्र कौन ? मित्रता का वास्ता किसके साथ जोडना? ऐसे तो आज किसी को कुछ खिलाया कुछ दिया अथवा कुछ पिलाया कि बात की बात मे अनेक मित्रो की खासी भीड मी जमा हो जायेगी। लेकिन सभी को मित्रता की श्रेणी (स्टेज) पर ला विठाना किंवा उन पर विश्वास कर लेना अपने आपको वोखे मे डालना है। चूंकि केवल खाने, पीने के रसिक न किमी के हुए और न होने के हैं जैसा-"All are not friends that go to church,,
"जो अपने घर मे निकल कर चर्च की ओर बढ रहे हैं, उन सभी जन को सज्जन (मित्र) समझने की भूल मत करो।"