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१२८ मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
शत-शत-वन्दना...
(तर्ज—देख तेरे ससार )
-विद्यार्थी श्रीकान्ति मुनि जी म० गुण रत्नो के सागर गुरुवर प्रतापचन्द महाराज,
शत शत वन्दन होवे आज । तारक उद्धारक पारक मुनिवर और धर्म जहाज,
___ शत शत वन्दन होवे आज ।।टेर।। शान्त सुरत है मोहनगारी, शील तेज से दमकती भारी। ज्ञान दान के हैं भण्डारी, साधना तुम्हारी है सुखकारी ।। तव चरणो को जिसने भेंटा सुधरे उसके काज ।।१।। वाणी आपकी ताप वुझाती, जन्म मरण का वेग मिटाती। अघोगति दूर हटाती, संसार सागर से पार पहुंचाती ।। पुनर्जन्म का चक्कर मिटे मिले मुक्ति का राज ।।२।। दोन दुखी के तुम हो त्राता, शीघ्र वनो मुक्ति के दाता। शिष्य काति मुनि गुण तव गाता, चरण सेवा सदा मैं चाहता। कृपा किरण से सयम मेरा फले फले गुरु राज ।।३।।
महिमा अपार है!
[तर्ज-जिया वेकरार है ] -आत्मार्थो मुनि श्री मन्नालाल जी म० गुरु गुण भण्डार है, शासन के शृगार है
गुरु चरण के शरण की महिमा अपार है ।टेर।। ओ स्यादवाद युत वाणी मुख से मानो अमृत बरषे जी।
सुन सुन करके भवि भावुक जन-मन अति हरष जी ॥१।। ओ लघुवय मे नन्दीश्वर गुरु के चरण मे दीक्षा धारी जी।
रवि-शशि सम दीप रहे है प्रताप जिनका भारी जी ।।२।। ओ त्वमेव माता त्वमेव पिता त्वमेव भव सिंधु सेतु जी।।
त्वमेव दृष्टा त्वमेव स्रष्टा त्वमेव मोक्ष का हेतु जी ॥३॥ ओ 'करुणानिधि कृपा करके दीजो आत्मा तारी जी।
चौरासी का अटका-भटका दीजो शीघ्र निवारी जी ॥४॥ मन्नामुनि भक्ति भाव युत गुरुवर के गुण गावे जी। गुरु चरण से मगल हो यह भाव सदा ही भावे जी ॥५॥