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१२६ / मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
मेरी वंदना स्वीकार हो...!
-विजय मुनि जी "विशारद"
[नर्ज जरा मामने तो ] जरा तुमको वताऊँ मैं भैया प्रताप गुरु हमारे सिरताज है। जिनके चरणो मे सीग झुकाओ गुण गाओ सभी मुनि आज रे ॥टेर।।
देवगढ नगरी मे जन्मे गाँधी गोत्र पावन किया।
मोडीराम जी पिता कहाये दाखा वाई ने जन्म दिया । क्या कहूँ जीवन को महिमा सारी महक सुगन्ध का राज है ॥१॥
सवत् उन्नीसौ पैसठ मे प्रताप गुरु ने जन्म लिया।
पन्द्रह वर्ष की वय मे आये पावन गुरु ने चरण दिया ॥ वादोमानमर्दक नद गुरु थे जो महान् प्रतिभा के साज है ।।राः
शिष्यरत्न वसत मुनि जी जिनकी महिमा सव जाने ।
मधुर वक्ता राजेन्द्र मुनिवर सिद्धान्त शास्त्री बखाने ।। गुरु नाम से सब सुख राज है और सफल होय आवाज है ॥३।।
सिद्धान्ताचार्य रमेग मुनि जी कवि लेखक वक्ता पाये।
प्रियदर्शी श्री सुरेश मुनि जी जीवन सुधारक कहलाये ।। मोहनमुनि भी तपस्या करते ये पूरे तपस्वीराज है ।।४।
विद्याभ्यासी नरेन्द्र मुनि जी अभयमुनि सेवा भावी।
आत्मार्थी है मन्ना मुनि जी बसन्त मुनि है समभावी ।। प्रकाश मुनि भी गुरु सेवा अरु विद्या मे रत ये आज है । ५॥
मुदर्शन अरु महेन्द्र मुनिवर लघु शिष्य ये कहलाये ।
कान्ति मुनि भी सेवा मे रत ज्ञान गुरु से यह पाये॥ मुनि गुणियो की माला चमके मही पर आज है ॥६॥
प्रताप गुरु के शिष्य सभी ये एक-एक से बड भागो ।
महिमा इनकी कितनी गायें सबकी किस्मत ही जागी । 'विजय" माला लभी मिल पाओ संतोष सरल मुनिराज है ।।७।।