________________
द्वितीय खण्ड अभिनन्दन · शुभकामनाए वन्दना लिया | १०७
वह वरवस ही त्रेता युग के भरत-मिलन की उस कथा का स्मरण करा देता है । हमारी यही कामना है कि यह नवीन मिलन जययुक्त हो, प्रेम और मंत्री से पूर्ण यह प्रदेश कल्याणमय हो, पृथ्वी पर शाति और मैत्री की प्रतिष्ठा हो ।
श्री जैन संघ ऋपि पचमी
साइथिया १६ भाद्र १३६१ वगान्द
ता० २-६-१९५४
आदरणीय गुरु प्रवर के चरणो मे
-महासती विजयाकुमारी इस विराट् विश्व के अचल में प्रतिदिन प्रतिघटे और प्रतिपल अनेक आत्माएँ मानव के रूप में अवतरित हुए और होती हैं। अपनी-अपनी विभिन्न अवस्याओ को पार करती हुई काल कवलित वनकर धरातल से चली गई।
परन्तु कौन उनका जीवन पुष्प सौरभ मकलित करता है? कोई नहीं। केवल उन्ही का स्मरण किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन को जगत मे जगमगाया है और परोपकार में लगा रहे हैं निज जीवन को।
हमारी मेवाड घरा ने समय-समय पर अनेको महान नर-रत्नो को जन्म दिया है । जैसेराणा प्रताप, दानवीर भामाशाह और आज हमारे सम्मुख है परम प्रतापी, शात, मरल-स्वभावी शास्त्र ज्ञाता मेवाड भूपण ५० रत्न श्री गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म० सा० ।
___आपका जन्म मेवाड प्रात के देवगढ (मदारिया) नामक गांव मे स०१६६५ मे हुआ था। आपके पिता धर्म प्रेमी श्री मोडीराम जी एव माता दाखांवाई थी। १५ वर्ष की उम्र मे वादीमानमर्दक प० रत्न श्री नन्दलाल जी म० के सदुपदेश से मन्दमोर मे दीक्षा ली।।
वौद्विक प्रतिभा के धनी होने से अल्प समय मे ही सस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओ पर प्रभुत्व पाया । आपकी प्रवचन गैली जनता को आकर्षणकारी है। आपकी ज्ञान दान के प्रति हमेशा लग्न लगी रहती है।
मैं सद्भावना पूर्वक चरण कमलो मे भाव-भीनी पुष्पाञ्जली मश्रद्धा समर्पित करती हूँ।
सन्त-जीवन
-साध्वी कमलावती हमारा यह भारत वर्ष एक आध्यात्मिक तथा महान् देश है । इसके कण-कण मे उज्ज्वलता भरी हुई है । यह भूमि रत्न-गर्भा है । यहाँ अनेक भव्य आत्माएँ अवतरित होकर अपनी जान-गरिमा से देश को आलोकित करते है तथा अपने सद्गुणो की महक फैलाते है ।
सन्त जीवन एक पुष्प के समान है। जिस प्रकार गुलाव का पुप्प काटो के वीच पैदा होता है, उसके चारो ओर काटे ही काटे रहते हैं, पर वह हंसता हुआ उन काटो को पार करके उनसे ऊपर उठता है । फिर वह हसता-खिलता कोमल गुलाव हम मभी को कितना प्यारा आल्हादजनक तथा आनन्द दायक होता है ? इसी प्रकार सन्त जीवन में भी अनेकाअनेक काटे रुपी कठिनाइयाँ आती हैं । पर सत