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१२२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
प्रताप-गुण-इक्कीसी
-मुनि रमेश-सिद्धातआचार्य वीन्भूमि मेवाड मे 'देवगढ' सुविख्यात । गाँघि गोत ओसवश का खिला पुण्य प्रभात ।।१।।
'मोडिराम' श्रीमान्जी माँ 'दाखा' की गोद ।
_ 'प्रताप' पुत्र प्रगट हुआ छाया मोद-प्रमोद ।।२।। वालवये पितु-मात का पडा दुःखद वियोग । स्थिति जान ससार की, किया न कुछ भी शोक ।।।।
फिर भी हताश हुए नही भारी सहा अघात ।
होनहार विरवान के होत चीकने पात ।।४।। मधुमय शिशु जीवन मे थे धार्मिक सस्कार । वे दिन-दिन विकसित हुए ज्यो सुधा की धार ॥शा
पाकर के सुनिमित्त को छेद मोह का जाल ।
__ लघु अवस्था देखता कैसा किया कमाल ।।६।। ज्ञान चक्षु तत्क्षण खुले जागा आतम राम । वादीमान मर्दन गुरु 'नन्दलाल' सुख धाम ।।७।।
वैराग्य से परिपूर्ण हो, सयम लिया सुखकार ।
गरु के चरण सरोज मे चित्त दिया उस वार ।।८।। अध्ययनाध्यापन मे लगे प्रमाद आलस छोड । ज्ञान-क्रिया के मेल से दिया जीवन को मोड़ ।।६।।
विनय-विवेक-विनम्रता हुई जीवन के सग ।
गुरु नन्द प्रसन्न हुए रग दिया पूर्ण रग ।।१०।। हिंदी-प्राकृत-सस्कृत गुजराती इगलीश । वहु भाषज तुम वने फला गुरु आशीश ।।११।।
समता ऋजुता सरलता सेवा मे अगवान ।
निर्भीक और निडरता धैर्यवान गुणखान ॥१२॥ स्नेह सगठन सहिष्णुता हुआ यहाँ पर मेल । समन्वय के तुम धनी शोर्य को वढतो वेल ।।१३।।
समस्या सुलझाइ सदा तुम हो कुशल प्रवीन ।
ओजयुक्त वाणी प्रवल हो श्रोता लवलीन ।।१४।। दुःख मे घबराये नहीं कभी न सुख मे गर्व ।। गुरु के जीवन मे सदा रहा है मगल पर्व ।।१५।।
प्रतिकूल वातावरण मे, न भूले क्षमा धर्म ।
वास्तव मे जाना गुरु साधुता का सुमर्म ।।१६।। सदा गुरु के चेहरे पे खिलता देखा वसत । अवश्य करोगे गुरु तुम्ही कमाँ का वस-अत ॥१७॥