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श्री प्रतापमलजी महाराज का गुणाष्टक
-प्रवर्तक मुनि श्री उदयचन्दजी म० "जैन सिद्धान्ताचार्य" (शार्दूल विक्रीडित छंद) श्रीमनिर्जरमण्डल स्तुतवरे भूमण्डले शोभिते, प्रख्याते वर भारतेऽति महति राजस्थले मण्डिते । श्री शोभायुत मेदपाट महिते श्रीदेवदुर्गपुरे
गांधीत्यन्वय शोभितो नरवर श्री मोडिरामाभिध ॥१॥ देवताओ की मन्डली द्वारा स्तुति किये गये शोभा युक्त इस भूमण्डल पर एक प्रसिद्ध भारत वर्ष देश है, उममे राजस्थान नामक प्रान्त है उसी प्रान्त मे शोभा एव लक्ष्मी से युक्त मेवाड नाम क्षेत्र मे देवगढ नामक नगर मे गाँधी वश के सुशोभित पुरुपो में श्रेष्ठ श्री मोडीरामजी प्रसिद्ध हए है।
तत्पुत्रोऽतिगुणान्वित सुसरलो द्राक्षा जनन्यात्मज नम्रोऽतीष परोपकारनिरतो नाम्ना प्रतापानिध बाणे पण्णवचादि सख्यकयुते श्रीवैक्रमे वत्सरे
आश्वीनोत्तम मास सप्तमितिथी जन्माग्रहीत्सत्तन ॥२॥ उन सु श्रावक श्री मोडीरामजी तथा सुश्राविका श्री दाखा वाई के अत्यन्त सरल स्वभाव वाले नम्र तथा परोपकारी प्रतापमलजी नाम के सुपुत्र हुए । उनका जन्म विक्रम सवत् १९६५ आश्विन महीने की सप्तमी तिथी के दिन हुआ।
माता चास्य शिशुत्वभाव समये स्वर्ग समासादिता । तस्या मोहममता बन्धन विधि स त्यक्तवान् सात्विक । लोकस्याप्यवशिष्ट नन्धनविधौ मोहात्मफस्तत्पिता।
औदासीन्य तया त भाग्य विभवे त्यक्त्वा च त स्वर्गत ॥३॥ उनकी माता बाल्यावस्था में ही स्वर्ग सिधार गई। इस प्रकार उनकी माताश्री का मोह मय बन्धन छुट गया । ससार मे अव उनके पिता श्री का मोहमय बन्धन ही शेप रहा था उसको भी आपने भाग्य विभव की उदासीनता के कारण शीघ्र ही छोड दिया अर्थात् उनके पिता श्री भी उनको छोड स्वर्गवासी हो गये।
बाल्येऽसी परमा विरक्तिमगमत् साधूपदेशामृत । श्रीमन्नन्दसुलाल नाम मुनिना सत्सगमासाध स ।। श्री कस्तूरसुधासु नाम मुनिना सच्छिक्षया शिक्षित ।
पूर्वस्मिन् कृत पुण्य सचिय तया वैराग्यमाव गत ॥४॥ उन्होंने बाल्यावस्या । साधु सतो के उपदेशामृत को पान कर वैराग्य भाव को धारण कर लिया । श्रीमान् महाराज मादेव श्री नन्दलालजी के सत्मग को प्राप्त किया तथा श्रीमान् कस्तूरचन्दजी महाराज सा० की शिक्षाओ से सुशिक्षित हो गा । इस प्रकार अपने पूर्व भव मे किये हुए पुण्य कर्मों के सचय मे वैराग्य की भावना को प्राप्त किया।
नन्दा ये मुनिनन्द शुकन्यने श्रीवक्रमे वत्सरे । मासानामति तौरवान्विततमे श्रीमार्गमासे सिते ।।