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द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाए · वन्दनाञ्जलिया | १११ प्रतापी व्यक्तित्व : भावांजलि की भीड़ में !
-मुनि प्रदीप कुमार 'विशारद' परमपूज्य गुरुदेव श्री प० श्री प्रतापमल जी म. सा. के अभिनन्दन ग्रन्य की पावन वेला मे श्रद्धा युक्त हार्दिक पुप्पाजलि ।
मेवाड भूषण, धर्म सुधाकर वालब्रह्मचारी प्रात:स्मरणीय श्री श्री १००८ श्री पूज्य गुरुदेव के अभिनन्दन ग्रन्य का प्रकाशन के मगलमय अवसर पर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता और आल्हाद हो रहा है। उसे मैं शब्दो मे व्यक्त करने में असमर्थ हू ।
सौम्यता, सरलता एव सादगी की प्रतिमूर्ति पूज्य गुरुदेव । दीक्षा की अर्धशती पार कर चुके। इस अवधि मे जो सदुपदेश और प्रवचन पूज्यपाद ने जन मानस को दिये हैं, वे आज भी हृदय स्थल पर अकित है।
___ अहिंसा के सन्देश को व्यापक बनाते हुए जो सघर्ष आपने किया है । उसे कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।
मैं उन समस्त विद्वद्जनो के प्रति आल्हादित हूं, जिन्होने अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन मे अपना अमूल्य सहयोग दिया है ।
मेरी यह हार्दिक कामना है कि गुरुदेव श्री का सदेश दिग्-दिगन्त म व्याप्त होकर इस समस्त सृष्टि को आलोकित करदे ।
अपने सुदीर्घ त्यागमय तपस्वी जीवन में देश के विभिन्न अचलो की ज्ञान यात्राएं कर पूज्य गुरुदेव ने जो ज्ञान गगा प्रवाहित की उसका निमज्जन कर विश्व-भारती अपने मुख-सौभाग्य को सराहती रहेगी। इसमे लेशमात्र भी सन्देह नही है।
यू तो शताब्दियो से अद्भुत शक्तिया धरा पर अवतरित होती रही हैं, कभी भी नर रत्नो का अभाव नहीं रहा।
भारतीय नर पुगवो-नर राजाओ की साहसिकता, महानु भवता, कला-कौशलता, शासन कुशलता, अतुलित त्याग तपस्या, प्रवल पाडित्य सिन्धु मम गाभीर्यादि जैन समाज कैसे प्रदर्शित कर सकता था? यदि श्री गुरुदेव के सम्मान मे अभिनन्दन अन्य का प्रकाशन न किया होता।
___ आपके तपोमय परोपकारी एव जनकल्याणकारी स्वरूप को देखते हुए, महात्मा तुलसीदास जी की ये निम्न पक्तिया आपके जीवन में कितनी चरितार्थ होती है
साधु चरित सुम चरित कपासू निरस विसद गुणमय फल जासू ।
जो सहि दुख पर छिद्र दुरावा वन्दनीय जेहि जग जस पावा !! और देखिये
वदउ सन्त समान चित हित अनहित नहीं फोइ !
अलि गत सुभ सुमन चिमि सम सुगन्ध कर दोइ !! उपर्युक्त कयन आपके उज्ज्वल न्यागमय जीवन मे कितना निकट है इसे प्रकट करने में मेरी लेखनी असमर्थ है।
अतएव, यदि चन्दन की लेखनी को मधु मे डूबाकर पूज्य श्री के महान कृत्यो को लिखा जाये, तो भी गुरुदेव के महान जीवन का वर्णन नहीं किया जा सकता है । अत इस पुनीत पावन मगलमयी वेला पर मैं माभार अपनी भक्ति पुप्पाजलि सविनय अर्पित करते हुये अपने को धन्य मानता हूँ।