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महामारी का आतंक
चहुँ ओर में मौत का धावा :एक अग्रेज विद्वान की भाषा मे--
'A man Proposes God disposes" अर्थात् मानव अपने मन-मम्निप्का में कुछ और सोचता है और वनता कुछ और ही है । विधि को 'दीक्षा प्रतिज्ञा' ना मजूर थी । अनएव विक्रम मवत् १६७४ के वर्ष मे मीपण भयकर प्लेग वीमारी ने मेवाड प्रात की चप्पा चप्पा भूमि पर आतक से भग आक्रमण खडा कर दिया । घर-घर, गाव-गांव और गली-गली में प्लेग का पजा फैन चुका था। जघा पर गाठ उठी और जल वुवुद् की तरह तीन दिवस के अन्दर ही ड्रमतर । मानो वे जन्मे ही नहीं थे। इस प्रकार छोटे-मोटे सैकडो-हजारो नर-नारी मौत के मुह मे जा सोए । जहाँ-नहाँ लाशो के टेर लग गये। गाँव-नगर मानो श्मशान से प्रतिभासित होने लगे। घर-घर मे रोना, पीटना, विलाप चिल्लाहट, चित्कार एव आर्तनाद के सिवाय, कहाँ वह मगलध्वनि ? कहाँ कर्ण प्रिय गीत स्वर ? मवके मव भय के मारे मानो कही छिप चुके थे।
स्वछन्दं सुख विहरति, हरिरिय मृत्युमूंगफुलेषु जिन प्रकार मृगयूथ मे सिंह मार-काट मत्राता है, उनी प्रकार र काल भी स्वच्छन्दता पूर्वक मनचाही करने लगा। फलस्वम्प किमी का सुहाग-निदूर लुट गया तो किसी के पिता-भ्राता, तो किसी की माता, किमी की वहन-बहु-बेटी और किसी-किसी के तो मारी वण-परम्परा का साफ सफाया ही हो चुका था। इस प्रकार वीरवीरागनाओ की भूमि हाहाकार की करुण पुकार से चीख उठी। मानो बहुत काल का भूखा-प्यासा काल कुटिल ने भयावनी इस घटना के बहाने अपना स्वार्थ पूरा किया हो।
मेवाह माता अपने लाडलो की दयनीय-शोचनीय दशा को देख-देख कर सौ-मौ आसू बहाने लगी। परन्तु भवितव्यता के सामने मभी हार मान चुके थे । खतरे से पूर्ण इस विकट वेला में कौन उपचार इलाज करे ? कौन सेवा-शुभ्रपा एव कौन नुख माता पूछे ? क्योकि जहां-तहाँ भगदड मची हुई थी।
रक्षति पुण्यानि पुरा कृतानिअवाछनीय इस ज्वाला की लपेट-झपेट मे वालक प्रताप भी आया, किन्तु पुण्य पिता की सुकृपा से बच निकला । लेकिन नी वीय प्यारे बालक प्रताप को नि सहाय एव अकेला-अनाथ छोडकर श्रीमान् मोडीराम जी एव दोनो भ्रातागण भी चलते बने । मातेश्वरी की वियोग-व्यथा की कथा अभी तक भूले ही नही थे कि वालक प्रताप के जीवन पर भयकर विपत्तियो मे भरा दूसरा पहाड आ गिरा । परिणामस्वरूप जीवन की भावी रूपरेखा ही बदल गई ।
संघर्ष और जीवन :कहा है-"होती परीक्षा ताप मे ही, स्वर्ण के सम शुर को" वीर साहसी प्रताप वीमारी से पूर्णत विजयवत हुआ, लेकिन मामने मात-तान-भ्रात का विछुडना और शिक्षा-दीक्षा एव आजीविका का ज्वलत