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द्वितीय खण्ड . संस्मरण | ८७ मे मानव-समाज को बरगलाकर धर्म-परिवर्तन कराया करते है। भारत मे करोडो हिन्दुओ को ईसाई इस क्रमानुसार से बनाये गये हैं।
मार्ग के सन्निकट एक ईसाई स्कूल के वरामदे मे कुछ क्षणो के लिए मुनि मण्डल ने विश्राम किया था। भीतरी-भाग मे ईसाई अध्यापक बना प्रचारक भारतीय वालको को पढा रहे थे। पढाई के तौर-तरीके अजव व कापट्य पूण थे। भगवान राम और कृष्ण के प्रति उन भोले-भाले वालको के दिलदिमाग मे घृणा का हलाहल टू सते हुए वे अध्यापक महोदय हिन्दु-धर्म की निकृष्टता और ईसाई धर्म की उत्कृष्टता की सिद्धि निम्न प्रकार से कर रहे थे
काले तस्ते 'Black Board' पर राम-कृष्ण एव ईसामसीह के चित्र अकित थे। भरसक प्रयत्न पूर्वक उन वालको को समझा रहे थे कि-देखो वालको । हिन्दू अवतार श्रीकृष्ण मक्खन की चोरी
और राम धनुष्य-वाण लेकर शिकार पर तुले हुए हैं। दूसरी ओर भगवान ईसामसीह का चित्र है । जो शात-प्रेम और क्षमा रूपी अमृत से पूरित दिखाई दे रहा है ।
क्या चोरी एव शिकार करने वाले भगवान बन सकते हैं ?'' "नही, I नही" शिशु वाणी की गडगडाहट गू जी । "तो आप के भगवान कौन ?' अध्यापक गण वोले । "हमारे भगवान ईसामसीह ।"शिशु बोले ।
उपर्युक्त नाटकीय पाखण्ड की शब्दावली गुरुदेव के कानो मे अच्छी तरह पहुँच चुकी थी। आर्य सस्कृति पर होने वाले मिथ्या प्रहार को गुरु महाराज कव सहन करने वाले थे । अन्दर पहुँच कर वोले--अव्यापक महोदय 1 मैं जैन भिक्षु हैं । आप लोग हिन्दी भाषा अच्छे ढग से बोल रहे है । अत आप किस देश के हैं ' गुरुदेव ने पूछा।
'हम विहार प्रान्त के निवासी हैं । अब हम लोग महाराज ईसानुयायी वनकर पढाने के बहाने धर्म प्रचार भी करते हैं।"
ओजस्वी वाणी मे गुरुदेव वोले-बुरा न माने | आप के प्रचार का तरीका विल्कुल गल्त है। अभी-अभी इन दूध मुहे बच्चो के दिमाग मे भगवान राम और भगवान कृष्ण के प्रति जो घृणा भरी है यह सर्वथा अनुचित है । इस प्रकार हिन्दू धर्म को गल्त सिद्ध कर ईसाई धर्म का प्रचार करना, क्या जनजीवन को सरासर धोखा नहीं है? क्या यह तरीका ठीक है? आप ही सोचिए । सभी अध्यापक अवाक थे । मेरे वच्चो | राम-कृष्ण और महावीर अपने देश मे महान अति महान हुए हैं। आप सभी मेरे मुंह से उनकी गौरव गरिमा सुनें
सभी लडके गोलाकार मे गुरुदेव को घेरे चारो ओर बैठ जाते हैं । मन ही मन अध्यापक तिलमिला रहे थे।
मेरे वालको | ध्यान दे सुनो | जो वालक अपने मात-पिता को भूल जाता है । क्या वह अच्छा वालक माना जाता है ?
"नही । नही !"-बाल वाणी गूंज उठी।
भगवान राम और श्री कृष्ण के विषय मे जो आप के अध्यापक ने कहा है वह ठीक नहीं है। राम और कृष्ण न चोर और न वे शिकारी थे। वे मानव धर्म के महान् अवतार, आर्य धर्म के सस्थापक, एव कस रावण जैसी आसुरी वृत्तियो का अन्त कर एव दैविक भावना की स्थापना कर मानव समाज का