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द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाएं वन्दनाञ्जलियाँ | १७
आधुनिक जिज्ञासु ।
वर्तमान युग की आवश्यकता अनुसार मुनिश्री के चरणो मे उदारता, गुणग्राहकता, मिलनसारिता, धैर्य तथा विवेक से दुरुह परिस्थितियो के अनुगमन मे निरभिमानता तथा सर्वधर्म समन्वय के सिद्धान्तो एव आदर्शों का पूर्णतया समावेश है अत सन्त एव भारतीय समाज के लिए आप अनुकरणीय प्रमुख महात्मा हैं। क्योकि इन आदर्शों मे ही भारतीय आर्य तथा अनार्य जनता का कल्याण निहित है ।
___ आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि हम लोगो को प्रति वर्ष आपके सदृश निस्पृह तथा निर्विकार साधुओ का अमर धर्मोपदेश प्राप्त होता रहेगा। हम जैनसघ, धर्म, सत्य, नि स्वार्थ तथा वात्सल्यादि प्रतिभा पूर्ण मुनि श्री के पद-पकजो मे भक्ति एव श्रद्धा पूर्वक अभिनन्दन समर्पित करते हैं। दिनाक १८-११-५६ ई०
हम है आपके चरण चचरीक श्री ओसवाल जैन मित्र मण्डल, कानपुर
मालवरत्न शासनरक्षक ज्योतिविद पडितवर्य श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी म० द्वारा प्रदत्त
आशीष-वचन पं० मुनि श्री प्रतापमल जी म० अपनी दीक्षा-साधना के पचास वर्प के वैभव को प्राप्त कर चुके हैं । यह हर आध्यात्मिक साधक के लिए परम प्रसन्नता की वात है। किन्ही भी विशिष्ट साधक की साधना अन्य साधको के लिए मार्गदर्शन है।
आपका स्वभाव अत्यन्त कोमल है। छोटे से बालक जैसा निश्छल मन है । व्याख्यान की शैली मन मोहक और प्रभावशाली है। द्वन्द्व भाव से आप एकदम दूर रहते हैं । मिलनसारिता और उदारविचार आपके प्रमुख गुण हैं।
जहा भी आपका चातुर्मास और विचरण होता है, वही पर ही आपकी लोकप्रियता का कीर्तन होता है। यह एक प्रशसनीय विशेषता है। जो कि सामान्य रूप से हरेक मे ही प्राप्त नही
होती है।
स्व० वादिमान मर्दक पडित श्रद्धेय प्रवर श्री नन्दलाल जी म० के आप प्रतिभाशाली सुशिप्य हैं । आप भी अपने शिप्य-अनुशिष्य के परिवार से भरे पूरे हैं । जिन मे अपनी-अपनी शानदार विशेपताएँ भी हैं। आपकी मेरे प्रति हार्दिक रूप से भक्ति निष्ठा है।
में पूर्ण रूप से आपके लिए यह कामना करता हूँ, कि आप इसी प्रकार जन जीवन को जिनवाणी की प्रेरणा से प्रतिबोधित करते रहे । धर्म प्रभावना की महनीय सुगन्ध से समार को महकाते रहे। साधना की चिर जीवत ज्योति की उज्ज्वलता से निरन्तर प्रकाशमान हो। इसमे आप सक्षम हो, सफल हो एव सशक्त हो। अनन्त चतुर्दशी जैन स्थानक, नीम चौक रतलाम (म० प्र०)