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६६ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
हमे आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि भविष्य मे प्रति वर्ष आप समान गुणी सतो की धर्मवाणी मिलती रहेगी। एक साथ ही वन्दनीय, धर्म प्राण, सुयोग्य गुरुवर, नवयुग प्रेमी की प्रतिभा प्रदर्शित करनेवाले मुनिराज हम आपके चरण कमलो मे भक्ति-पूर्वक वन्दना अर्पित करते है।
हम है आपके उपदेशाकाक्षी जैन-जैनेतर सघ बकानी के बन्धु-गण
श्री १०८ पूज्य मुनि श्री प्रतापमल जी म० की
पवित्र-सेवा में
अभिनन्दन-पत्र-२ मान्यवर महोदय ।
श्री चरण ने इस वर्ष स० २०१३ विक्रम का चातुर्मास कानपुर नगर मे करने की विशेष कृपा की है इससे जन एव अर्जन समाज का वृहत्तर कल्याण हुआ है। इसी प्रकार श्री मुनि महाराज ने स० २००२ वि० तथा स० २००६ वि० मे भी चातुर्मास करके कानपुर नगर के जैन समाज को पात्र बनाया था, अत यहां का जैन समाज विशेष रूप से अत्यन्त आभारी है तथा अपार हर्षोल्लास के साथ भक्ति युत श्री चरणो मे नत मस्तक है ।
आपने वि० स० १९६५ मे देवगढ (मेवाड) की वीरप्रसविनि अवनि पर अवतरित होकर वि० स० १९७६ मन्दसौर मे गुरुवर्य वादकोविद प्रखर पडित श्री श्री १००८ मुनि श्री नन्दलाल जी म० मे दीक्षा ली। दीक्षोपरान्त जैन शास्त्र तथा संस्कृत साहित्य का यथेष्ट अध्ययन करके आदर्श मुनि महाराज ने अधिकाश भारतवर्ष के भू भाग का पैदल परिभ्रमण कर, व्यवहार पटुता, कार्य कुशलता, परमौदार्यता न्याय परायणता एव विनम्रता का सवल परिचय एव सन्देश देकर भारतीय समाज का जो उत्कृष्ट उपकार किया है, वह स्तुत्य तथा अनुकरणीय है।
आदर्श मुनि ।
आप ने ससार मे अवतरित होकर भव-वन्धनो को ठुकरा दिया तथा लौकिक वासनाओ को सर्वथा परित्याग करके आदर्श मुनि वेश-धारण कर पच महाव्रत का पालन करने का दृढ सकल्प किया है, वस्तुत ऐसे ज्ञानी एव विरक्त महात्मा सासारिक दुखो को प्रनष्ट कर सकते हैं । हम लोग आप के पदार्पण से कृत-कृत्य हो गये हैं । सुयोग्य मुनिवर ।
आत्मार्थी मुनि श्री वमन्तीलाल जी म० सा०, विद्यार्थी मुनि श्री राजेन्द्र कुमार जी म० तथा वि० मुनि श्री रमेशचन्द्र जी म० जैसे सुयोग्य एव विनीत शिष्य आपको सुप्रतिष्ठित गुरु पद पर परमासीन करके निरन्तर आप की सेवा मे रत रहकर आत्मोन्नति के लिये सतत शास्त्राभ्यास मे सलग्न हैं यह परम हर्ष का विषय है।