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कलकत्त में नव जागरण
शहरी जीवन का दिग्दर्शन--- कलकत्ता हुगली नदी के किनारे पर व समुद्री तट से जुड हुआ, बगाल प्रात का एक भारत के सर्व प्रमुख नगरो मे से प्रथम नगर के माथ-साथ विश्व का पाचवा नगर भी माना गया है। जहाँ सत्तर लाख से भी अधिक मानव ममूह निवास करता है।
गगनचुम्बी उन्नत इमारतो से सजा हुआ, सैकडो कल-कारखानो की गड गडाहट से सदैव शब्दायमान, विशाल-विराट राजमार्गों की एकसी कतारें, जो विपुल नर-नारियो की भीड-भगदड से भरी-पूरी, मोटरें, तागे, रिक्शे, साइकलें, एव ट्रामो की दौडा-दौड से जो सचमुच ही यदि नवागतुक नरनारी थोडी सी भी गफलत कर जाय, तो नि सन्देह जीवन से हाथ ही धोना पडे एव वह चमकीलीदमकीली उन्नतोन्मुखी हावडाब्रिज (Bridge), मानो मेधावी मानव के मन मस्तिष्क ने मृत्यु-लोक से स्वर्गापवर्ग पर्यन्त पहुचने के लिए एक अनोखी निस्सरणी नियुक्त की हो, ऐसा जान पडता है । इस प्रकार भौतिक वैभव-विभूति के साथ-साथ आत्मिक-धार्मिक वैभव से भी यह विराट नगर लदा हुआ जान पडता है । जहाँ मारवाड से आये हुए- अग्रवाल, पोरवाल एव महेश्वरी आदि हजारो लाखो राम और श्री कृष्ण के उपासक हैं, तो दूसरी ओर मारवाड, गुजरात, पजाव एव मेवाड राजस्थान से आये हुए व्यापारार्थ करीव-करीव पच्चीस हजार से ज्यादा सुसम्पन्न जैन नर-नारी भी वास करते है । अपनी आत्मानुसार धर्म-साधना-आराधना के लिये जिनके पृथक-पृथक भव्य-भवन खडे है । जहा वे मुमुक्षुगणं आत्मचिन्तन, मनन एव आत्मानन्द का आलिंगन करते हुए भाव लक्ष्मी की अर्चा-अभ्यर्थना करते हैं।
सराक जाति का परिचयवगाल देश मे जहा आज भी मद्य-मास मत्स्य आदि पाच मकारो का खूब प्रचार है, वहां जहाँ तहाँ काफी तादाद में एक ऐसी मानव जाति भी पाई जाती है । जो “सराक" के नाम से प्रसिद्ध है। “सराक" शब्द शायद "श्रावक" का ही रूपान्तर होना चाहिए। ये जन कृपि, दुकानदारी एव कपडा वुनना आदि निर्वद्य अर्थात अल्प पाप क्रिया वाले व्यवसाय करते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं। तत्त्ववेत्ताओ का अटल अनुमान है कि-ये जन उन प्राचीन जैन श्रावको के वशज है, जो जन जाति के अवशेष रूप है । यह जाति आज प्राय हिन्दुधर्मानुगामी हो चुकी है । तथापि ये पक्के शाकाहारी हैं । यहां तक कि "काटना" "चीरना" "फाडना" आदि कठोर शब्दो का प्रयोग भी दैनिक व व्यावहारिक जीवन मे नहीं करते, ऐसा सुना जाता है। अद्यावधि कही-कही ये लोग अपने आप को जैन एव प्रभु पार्श्वनाथ के उपामक भी मानते हैं । इस जाति के विषय में अनेक पाश्चात्य एव पौर्वात्य विद्वान् लेखको ने भी पर्याप्त उल्लेख करते हुए- स्पष्टत सिद्ध किया है कि यह जाति पहले सम्पूर्ण रूपेण जैनधर्मावलवी थी। वग-विहार मे हम इस जाति के निकट सपर्क मे आये और उसे अपने वशानुगत प्राचीन सस्कारो की याद दिलाई।
प्रवेश समारोहहाँ तो, उस प्रकार गुरुवर्य आदि छहो मुनियो का अनेक भव्य भक्तो के साथ-साय रामपुरिया