________________
२० । मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ जा पहुँचे थे । उम गांव के निकट एक थाना था। थाना इसलिए था कि समीपस्थ वन विभाग में से कोई लकडियो की तस्करी नही कर बैठे । इस कारण इन्सपेक्टर और चार पुलिम मैन रहते थे।
तपस्वी श्री वसन्तीलालजी म. सा. के उपवास का पारणा था। अतएव मुनि श्री शाकाहारी परिवार की पूछ-नाछ मे निमग्न थे । इतने मे तो थानेदार को मालूम हुआ कि श्वेत पोशाक मे पाच छ चोर लुटेरे गाँव की एक पाठशाला मे चुपके से ठहरे हुए हैं। खवर सुनते ही तन्क्षण उसने पुलिस को भेजा कि जाओ | उन श्वेत पोषाक वालो को थाने मे ले आओ।
पुलिस—आपको थानेदार साहव बुला रहे हैं । गुरु-किसलिए? पुलिस-यह तो मुझे पता नहीं।
गुरु-तपस्वी जी | पात्र लेकर जाओ । सभव हैं थानेदार शाकाहारी अथवा जैन होंगे । जो रूखा-सूखा असण मिल जाय, ले आओ।"
आज्ञानुसार तपस्वी जी वहां पहुंचे । न कोई आदर सत्कार और न मधुर वाणी का उपहार था । अपितु भडक कर वोला-तुम कौन हो ? किमलिए मुह पर कपडा बांध रखे हो ? वैठो यहाँ, अपनी सारी रिपोर्ट लिखाओ वरन् जेल में ठूस दिये जाओगे । दुनियाँ की आंखो मे धूल झोक कर डाका डालते हो।
____ तपस्वी-शात मुस्कान मे-क्या आपका भापण पूरा हुआ ? प्रथम तो आपको वोलने मे जरा भी विवेक नहीं है । मैं जैन श्रमण भगवान महावीर का शिष्य हूँ। शायद आप नशे मे अन्ट-सट वकवाद कर गये। ऐमा मुझे महसूस हुआ। हम न चोर और न डकैत हैं, हां, यदि मुझे मालूम होती कि आप इन्क्वारी के लिए बुला रहे है, तो नि सन्देह मेरे गुरु जी यहाँ मुझे कदापि नही भेजते । आप को ही वहाँ जाना पड़ता।
वस्तुस्थिति का परिज्ञान होने पर थानेदार साहब का टम्प्रेचर कम हुआ। शीघ्र कुर्सी से उठकर करवद्ध होकर बोला-आप आज कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे है ? यहां तो कोई भी जैन नहीं है । अक्सर सभी मासाहरी रहते हैं ।
तपस्वी हमारा मुनि सघ पार्श्वनाथ हिल्स होता हुआ कलकत्ते की तरफ धर्म प्रचार के लिए जा रहा है । हम तो आपको शाकाहारी समझकर आहार के लिए आये हैं । लेकिन यहाँ तो 'ऊंची दुकान फीका पकवान' की तरह विपरीत वातें मिली । अस्तु,
थानेदार–मन ही मन खेदित होता हुआ, उफ । जैन साघु आशा लेकर आये और खाली जावे । मेरी खुराक गदी है । आप मेरे यहाँ से फल ले पधारें।
हम श्रमण, सवीज वाले फल लिया नहीं करते हैं । आप तो मेरे साथ चलकर मेरे गुरुदेव के दर्शन कर वही कुछ भेट अर्पण करें ।
गुरु प्रवर की सेवा में उपस्थित होकर अपराव की क्षमा मागता हुआ वोला-गुरु जी । मैं क्या मेंट करूं आपको ?
बम, आज मे आप मासाहार का त्याग कर शाकाहार की प्रतिज्ञा स्वीकार करें। हमारे लिये यह अमूल्य भेंट होगी।
तदनुसार थानेदार माहव प्रतिज्ञा स्वीकार कर घर की ओर लोटते हैं ।