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प्रथम खण्ड · शिष्य-प्रशिप्य परिचय | ७१
७-श्री विजय दुनि जी महाराज 'विशारद' ~~
उदयपुर निवासी श्रीमान् कोठारी मनोहरसिंहजी एव सौ० श्रीमती शातादेवी की गोद से वि० स० २००८ माघ सुदी १० मगलवार की शुभ घडी मे जन्म हुआ था। मात-पिता की ओर से पुत्र विजय कुमार को मम्कार अच्छे मिले । प्रारम्भ मे ही कोठारी जो की इच्छा थी कि- हम अपने विजय
और वीरेन्द्र कुमार को धर्म-मेवा मे समर्पित करेंगे। तदनुसार स० २०२० का चातुर्मास गुरुदेव आदि मुनिवृन्द का उदयपुर था। मुनियो के मधुर व्यवहार से प्रसन्न होकर मान्यवर कोठारी जी ने अपने पुत्र विजय कुमार को साधनामय जीवन के लिए गुरुदेव के वरद हाथो मे सौंप दिया। तत्काल धार्मिक अध्ययन प्रारम्भ कर दिया गया।
उपयोगी ज्ञान साधना एव परिपक्व वैराग्य के होने पर स० २०२३ मृगसर वदी १० की शुभ वेला मे मन्दसौर के रम्य-भव्य स्थली मे दीक्षोत्सव सम्पन्न हुआ। इस उत्सव मे काफी साधु-साध्वी एव हजारो मुमुक्षु ने भाग लिया था। यह समारोह भी अपनी शानी का अनुपम था। गुरुप्रवर श्री के प्रशिष्य के रूप मे आप घोपित किये गये ।
दीक्षोपरान्त विनय-विवेक-विद्याध्ययन का अच्छा विकास किया । हिन्दी-सस्कृत-और प्राकृत अध्ययन मे रत हैं। व्याख्यान शैली जोशीली व रुचिवर्धक है । कवित्त कला एव लेखन कला मे आपकी प्रशसनीय गति है । श्रोताओं को पूर्ण विश्वास है कि भविप्य मे आप अच्छे मनस्वी एव व्याख्यान दाता वनेगे। ८-आत्मार्थी श्री मन्ना मुनि जी महाराज -
स २०२४ का वर्षावास गुरुदेव आदि सप्त ऋपियो का जोधपुर था। उस समय आप वोटाद गुजरात प्रात की ओर से दीक्षा की शुभ भावना को लेकर इधर आए हुए थे । लिखित प्रश्नो का गुरुदेव के मुखारविन्द से उचित समाधान प्राप्तकर आप काफी प्रभावित हुए और दीक्षा की भावना व्यक्त की। आप मुझे भागवती दीक्षा प्रदान कर धन्य बनावें। अच्छा सयम पालने की मेरी रुचि आप का शिष्यत्व पाकर सुहट वनेगी और रत्न त्रय की अच्छी सवृद्धि होगी।
___ तदनुसार स० २०२४ मृगसर वदी १० के मगल प्रभात मे जोधपुर के पवित्र प्रागण मे दीक्षोत्मव सम्पन्न हुआ।
आप को दशवैकालिक सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र एव कई थोकडे भी कठस्थ हैं । सदैव ज्ञानध्यान मे निमग्न रहते है । यदा-कदा तपाराधना भी किया करते है। हिन्दी एव गुर्जर भाषा मे व्याख्यान भी फरमाते है । गुरुदेव के निश्राय मे आपको बनाये गये हैं। ह-श्री वसन्त मुनि जी महाराज स० -
आप उज्जैन के ओमवाल श्रीमान् छोगमल जी के सुपुत्र है । स० २०२४ का जोधपुर चातुर्मास था। जोधपुर मे दर्शन के निमित्त से आए हुए थे। उन्ही दिनों सन्तो के आप अधिक सम्पर्क मे आए और एकदम भावना मे परिवर्तन ले आए। तदनुसार अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री माणिक लालजी एव मातेश्वरी की अनुमति प्राप्तकर स० २०२५ माघसुदी १५ के दिन भागवती दीक्षा आपकी मजल नगर मे सम्पन्न हुई। प्रशिग्य के रूप मे आपको घोपित किया गया। सदैव रत्नत्रय की अभिवृद्धि के आप अभिलापी एव सन्त-सेवा भी किया करते हैं । हिन्दी प्राकृत-सस्कृत अध्ययन मे रत हैं ।