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प्रथम खण्ड शिष्य-प्रशिष्य परिचय | ७३ का पवित्र प्रतीक माना गया है। जीवन का प्रत्येक कण और प्रत्येक क्षण परोपकार-महक से महकता है, सेवाधर्म से दमकता है और शील सदाचार से चमकता रहता है ।
___इसलिए एक सामान्य साधक द्वारा एक महामहिम मनस्वी के सयमी जीवन का सागोपाग एव सुष्ठुरित्या वर्णन-विश्लेपण करना असाव्य ही नहीं अपितु एक दुष्कर कार्य भी है । चूकि गुण तो इतस्तत विखरे हुए असीम हैं और लेखक की वही एक जिह्वा और वही एक लेखनी जो उस समय मे एक ही गुण का कथन व चित्रण कर पाती है ।
मैंने भी अपने भीतर मे उभरते हुए मनोभावो को वलवती प्रेरणा से प्रेरित होकर चन्द शब्दो द्वारा परम प्रतापी यमनियमनिष्ठ, जनोज्वल मणि, महामहिम गुरुप्रवर श्री प्रताप मलजी म० के ज्योतिर्मय सयमी जीवन की झिलमिलाती झांकी विद्वद् वृन्द के कमनीय कर कमलो मे अर्पित की है । पर्याप्त सामग्री अनुपलब्ध होने के कारण तथा पूरी जानकारी के अभाव मे यद्यपि जहाँ तहाँ त्रुटिया एव यत्रतत्र प्रासगिक भाव आदि छूट भी गये हैं। तथापि इस सम्यक् परिश्रम के लिये मैं अपने आपको शतवार भाग्यशाली मानता हू कि-एक यशस्वी ओजस्वी आत्मा के प्रति मुझे कुछ लिखने का सौभाग्य मिला है । जो हर एक लेखक एव वक्ताओ के लिये दुष्प्राप्य सा रहा है । इस परिश्रम की सफलता का श्रेय भी मेरे उन्ही श्रद्धय गुरु देव को है, जिन्होंने मुझे वास्तविक सावना के मगलमय, महामार्ग का दर्शन करवाया है।
जिस प्रकार गुलाव मानव के दिल-दिमाग को ताजगी एव स्फूर्ति प्रदान करता है उस प्रकार गुरु भगवत का जीवन भी भव्यात्माओ के मनमस्तिष्को मे सत्य, शिव, सुन्दरम् की शीतल मन्द सुगन्ध प्रस्फुरित करता रहेगा। अतएव कहा है कि-महापुरुषो के गुणानुवाद करना मानो अपने आप को महान् बनाना है।
लेखक का सर्वोपरि ध्येय व लक्ष्य व्यक्ति के जीवन निर्माण का है। जिसका आधार है—गुरु भगवतो का साधना मय चमकता जीवन, दमकता उपदेश, अनुभव एव इनके धार्मिक आत्मिक विचार और आचार, इन्ही मौलिक विचारो के माध्यम से ही व्यष्टि और समष्टिगत जीवन का सम्यक् सुन्दर स्वस्थ निर्माण सम्भव है।
महापुरुषो का पढ़हु चरित्र । ताते होय जीवन सु पवित्र ।