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६४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्य
किशनलाल जी म० एव आप (मौभाग्यमल जी म०) के अतीत जीवन की नित नई झांकियां सनने को एव सीखने को मिली। __इस प्रकार सभी दृष्टियो से यशस्वी, यह चातुर्मास इन्दीर के स्थानकवासी इतिहास मे अद्वितीय एव सफल रहा । विहार-वेला मे भी हजारो नर-नारियो ने उसी श्रद्धा-भक्ति पूर्वक विदाई समारोह में भाग लिया । और आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी म० श्री सौभाग्य मल जी म० एव गुरु प्रवर श्री प्रताप मल जी म० की जय-जयकारो से वह अनन्त आकाश मण्डल गूज रहा था।
आयावयति गिम्हेसु, हेमतेसु अवाउडा । वासासु पडिसलीणा, सजया सुसमाहिया ॥
- आचार्य शय्यभवसूरि प्रशस्त समाधिवत सयमी मुनि ग्रीष्म ऋतु मे सूर्य की आतापना लेते हैं हेमन्त ऋतु मे-शीतकाल मे अल्प वस्त्र रखते है और वर्षा ऋतु मे कछुए की तरह इन्द्रियो को गोपन करके रहते हैं।