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शिष्य-प्रशिध्य परिचय
१-तपस्वी श्री बसन्तलाल जी महाराज -
आप मदसौर निवासी स्व० श्री रतनलाल जी ओसवाल दुगड के सुपुत्र हैं। स्व० सती शिरोमणि श्री हगाम कुवर जी महाराज की सत्प्रेरणा से आप को ज्ञान गभित वैराग्य उत्पन्न हुआ। तदनुसार ता० २१-२-४० को रतनपुरी (रतलाम) मे गुरु प्रवर के चरण कमलो मे प्रथम शिष्य होने का सीभाग्य प्राप्त किया । यथा वुद्धि हिन्दी-सस्कृत-एव जैनागम का पठन-पाठन पूर्ण किया। ज्ञान-ध्यान एव स्वाघ्याय मे आप की रुचि अधिक रही है। वस्तुत काफी वर्षे से आप लवा आसन अर्थात् न दिन मे और न रात मे शयन करते हैं। कभी एकान्तर, कभी वेले-तेले इस प्रकार निरन्तर रग-रगीली तपाराधना के माथ-साथ बहुधा मौन एक ज्ञान-ध्यान मे वाधा न पड़े, इस कारण जन कोलाहल से दूर रहना ही आप की अन्तरात्मा को अभीष्ट है ।
गुरुदेव एव घोर तपस्वी खद्दरधारी स्व० श्री गणेशलाल जी महाराज का साहचर्य पाकर आप की साधना अधिकाधिक सवल-सफल एव चमक उठी एव जन-जीवन के लिए श्रद्धा का केन्द्र वनी
__ कई महा मनस्वी मुनियो की महान् चरण सेवा कर अपने महा मूल्यवान सयमी जीवन को लाभान्वित कर चुके हैं । अद्यावधि आप ने मालवा, उत्तरप्रदेश, विहार, वगाल, नेपाल, खानदेश, राजस्थान, गुजरात, पजाब, आध्र और कन्नड प्रातो की हजारो मील की पद यात्रा तय कर चुके हैं । आप श्री को वक्तृत्व शैली मीधी-सादी श्रोताओ के हृदय को छूने वाली है । अभी आप खानदेश-महाराष्ट्र मे विचरण करते हुए शासन की प्रभावना वढा रहे हैं । २-श्री राजेन्द्र मुनि जी महाराज शास्त्री -
आपका जन्म पीपलु (म० प्र०) ग्राम मे क्षत्रियकुल भूपण सोलकी गोत्रीय श्री लक्ष्मणसिंह जी की धर्मपत्नी मौ० श्री सज्जन देवी की कुक्षी से कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन हुआ था। शंशव काल से ही आप की प्रवृत्ति धार्मिक कार्यों में विशेष रही।
एकदा अहमदावाद मे आपको गुरु प्रवर श्री प्रतापमल जी महाराज के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । 'जैना सग वैमा रग' तदनुसार गुरुदेव की अमृत वाणी सुनकर आपके हृदय सागर मे वैराग्य की गगा फूट पडी । साथ ही साथ जैन मुनि-महामतियो के प्रति प्रगाढ श्रद्धा उत्पन्न हुई और धार्मिक मध्ययन भी प्रारम्भ कर दिया । स्वल्प काल मे ही आशातीत सफलता मिली और वैराग्य भाव पुष्ट बने । अतत वि० स० २००८ वैशाख शुक्ला ८ की शुभघडी मे खण्डेला (जयपुर) मे पू० श्री रघुनाथजी महाराज एव गुरुदेव श्री प्रतापमल जी महाराज आदि मुनि सघ की उपस्थिति में दीक्षाव्रत स्वीकार किये।
दीक्षोपरात गुम्देव के नेतृव में हिन्दी-मस्कृत-प्राकृत भापाओ का अच्छा ज्ञान उपलब्ध किया एव धार्मिक शास्त्री तक की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण की । स्वर की माधुर्यता के कारण आपकी व्याख्यान शैली