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पारिवारिक-परीक्षा
विघ्न के बादल - मोह मायावी जीवो का स्वभाव ऐसा ही होता है कि जब कोई भी भव्यात्मा सत्पथ पर आसीन होने जाती है तव न जाने कितने ही काका, मामा, भाई, भत्तीजे, मासा, फूफा आदि ढेरो सगेसम्बन्धी दवी-चुपी-गली कूचों से निकल-निकल कर साम दाम-दण्ड एव भेद नीति से उस पवित्र आत्मा को डाट-फटकार कर रोकने के लिए विघ्नरूप विकराल चट्टाने वनकर आ खडे होते हैं । पश्चात् भले वह मुमुक्षु घर मे आकर कुमार्गी बन जाय, अथवा मरण को प्राप्त हो जाय परन्तु सुकार्य पीठिका पर आरूढ उस साधक को वे न्याती-गोती अपनी फूटी आखो से देखना पसन्द नही करते हैं । कहा भी हैस्मरति पर द्रव्याणि मोहात् मूढा प्रतिक्षाणम् । अर्थात् मायावी जीवो की मानस स्थली सदैव विपयविकारयुक्त उस विभाव दशा से व पर-परिणति मे सरावोर रहती है। पर द्रव्यो मे रमण करना, उनका धर्म-पथ-कर्तव्य होता है । आस-पास वालो को भी उसी विपैले माया जाल की जजीरो मे जकडना भी चाहते हैं । वस्तुत प्रणवीर प्रताप को भी ऐसे ही नाट्य दृश्य को देखना पडा व भारी कठिनता का सामना भी करना पड़ा।
चार तमाचे वूआजी की ओर से - जब प्रताप मृत्यु जय जडी-बूटी को प्राप्त करने के लिए गुरु भगवत के साथ-साथ घर (देवगढ) से रवाना हुआ और कुछ ही कोसो गया होगा कि पीछे से दो-चार सगे-सम्बन्धी चढ आए। वल पूर्वक प्रताप को पकड कर दो-चार गालियो के साथ-साथ दो-चार मुह पर तमाचे जमाए और। जबर्दस्ती प्रताप को पुन घर पर ले आए । घर पर बुआजी (पिताजी की वहन) इन्तजार कर ही रही थी। घर पहुचते ही अब बुआजी की तरफ से नरमा नरम और गरमा गरम भेंट चढने लगो-"थने या काई सूझी? म्हारे पीहर ने उजाडे काई ? कमाई ने नही खाई सके वापडो, अणी वास्ते माग खावणियो साघुडो-वणवाने जाई रह्यो है।" इस प्रकार गालियो की मीठी-मीठी बौछारें हुई और गाल पर दो-चार तमाचे अव भुगाजी की और से ओर पडे ।
वैराग्य को उतारने का तरीका - अव अग-अग में व्याप्त उस कीरमिजी वैराग्य को समूल उतारने के लिए उन सगे-सम्बन्धियो ने नीमवृक्ष के पत्तो से उवले हुए जल से वैरागी प्रताप को नहलाया-धुलाया, पुरानी पोशाक फिकवाई गई, नई धारण करवाई और भी जो करने के थे-जादू-टोणे-टोटकें वे सब ससारियो द्वारा कियेगये। लेकिन-"न्यायात् पथ प्रविचलति पद न धीरा." अर्थात् धीर पुरुप धार्मिक नीति-नियमो का सुख तथा दुखावस्था मे कदापि त्याग नही करते हैं। चन्दन को काटे तो भी महक, घीसे तो भी खुशबू और पास मे खडे रहे तो भी सरस-सुगन्ध । इसी प्रकार प्रताप का वैराग्य उतरने की अपेक्षा और ज्यादा घर-घर गली-गली मे महक उठा, निखर उठा। मानो रगरेज ने कोरमिजी रग से रग दिया हो । वीर