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प्रथम खण्ड गुरुवर्य की परिचर्या | ४१
स्वाभाविक सुन्दरता (Natural Beauty) सेवा-धर्म की स्वाभाविक सुन्दरता (Natural Beauty) से हमारे चरित्रनायक जी म० का जीवन महक उठा है। इस कारण सेवा-धर्म से उनके जीवन को पृथक् करना एक असाध्य काम है। आपकी साधना का विशाल-विराट् दृष्टिकोण एक सेवाधर्म एव अध्ययन-अध्यापन पर ही टिका हुआ है। ऐसे महा-मनस्वियो का जीवन वसुन्धरा के लिए वरदान स्वरूप माना है ।
__ हा तो, गुरु प्रवर श्री नन्दलाल जी म० का सवत् १९६३ के वर्ष मे रतलाम नगर मे स्वर्गारोहण हुआ। उस समय आप (प्रताप गुरु) का वर्षावास जावरा नगर मे था । वस्तुत अन्तिम गुरु पादपरिचर्या करने का महामूल्यवान अवसर हाथ नही लगा। तथापि काफी समय आपका गुरु भगवन्त की सेवा-भक्ति मे ही बीता है ।
सेवा का पथ जगतीतल पे, बडा कठिन बतलाया है। सेवा प्रत असिधारा सा, रिषि मुनियो ने गाया है।
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