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प्रथम खण्ड . देवगढ मे दिव्य ज्योति | १३
और भी-"Coming events Cast their Shadowj before"
अर्थात-भावी घटनाओ की प्रतिच्छाया पहिले से ही दृष्टिगोचर हो जाती है। क्योकि जैसी आत्मा पेट मे आती है, वैसे विचार माता की मन रूपी प्रयोगशाला मे उभरते-उठते रहते हैं। तभी तो कहा है-"पूत के पग पालने मे क्या पेट मे ही दीख पडते हैं ।" येन-केन प्रकारेण भावना सम्पन्न हुई
और वह शुभ दिन भी सन्निकट आ खडा हुआ। अर्थात् सुहावनी शरद की आश्विन कृष्णा सप्तमी सवत् १९६५ की रात्रि में महापुण्यशाली प्रतापी एक पुत्र रत्न का शुभागमन हुआ । जिसका नाम "प्रताप चन्द्र" रखा गया।