Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बाईसवाँ क्रियापद - पंचविधक्रियाएं और उनके स्वामी
कठिन शब्दार्थ - पुढे - स्पृष्ट (युक्त), अपुढे - अस्पृष्ट (अयुक्त)।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिस समय जीव कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, क्या उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है अथवा प्राणातिपातिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है।
उत्तर - हे गौतम! १. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है और प्राणातिपात क्रिया से भी स्पृष्ट होता है २. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, किन्तु प्राणातिपात क्रिया से स्पृष्ट नहीं होता, ३. कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपात क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है ४. तथा कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से अस्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकी क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपात क्रिया से भी अस्पृष्ट होता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पांच क्रियाओं से स्पृष्ट-अस्पृष्ट की अपेक्षा चौभंगी कही गयी है।
- पंचविधक्रियाएं और उनके स्वामी कइणं भंते! किरियाओ'पण्णत्ताओ?
गोयमा! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ। तंजहा-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्रियाएं कितनी प्रकार की कही गई हैं? .
उत्तर - हे गौतम! क्रियाएं पांच प्रकार की कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - १. आरम्भिकी २. पारिग्रहिकी ३. मायाप्रत्यया ४. अप्रत्याख्यान क्रिया और ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वर्णित पांच क्रियाओं का स्वरूप इस प्रकार है - १. आरंभिकी (आरंभिया) क्रिया - पृथ्वीकाय आदि छह काय के जीवों की हिंसा करना आरंभ है । आरंभ से लगने वाली क्रिया को आरंभिकी क्रिया कहते हैं। इसके दो भेद हैं - जीव आरंभिकी और अजीव आरंभिकी । जीव की हिंसा से लगने वाली क्रिया जीव आरंभिकी है। अजीव में जीव का आरोप कर भावों से उसकी हिंसा करना अजीव आरंभिकी क्रिया है।
२. पारिग्रहिकी - जीव अजीव पर ममत्व-मूर्छा से लगने वाली क्रिया पारिग्रहिकी क्रिया है।
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