Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र AsteletstatestatestseeteletstatestetratakstateketestakattacketreeketstreetstatestersekstetraEEEEEEEEEEntetaketeetstakestakat
___ मनोयोग का पूर्ण निरोध करने के बाद ही वचन योग का निरोध करते ही ऐसी बात नहीं है। सभी योगों को एक साथ पतला करके (अत्यंत मंद करके) फिर उन्हें एक साथ नष्ट करते हैं। जैसे - वृक्ष को काटने के लिये पहले उस पूरे वृक्ष को छील कर पतला कर देते हैं। बाद में पूरा काट देते हैं वैसे ही यहां भी समझना चाहिए।
सिद्धों का स्वरूप तेणं तत्थ सिद्धा भवंति असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता णिट्ठियट्ठा णीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं कालं चिटुंति।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ - 'ते णं तत्थ सिद्धा भवंति असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता णिट्ठियट्ठा णीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं कालं चिटुंति'?
गोयमा! से जहाणामए बीयाणं अग्गिदड्डाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती ण भवइ, एवामेव सिद्धाण वि कम्मबीएसु दड्डेसु पुणरवि जम्मुप्पत्ती ण भवइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ- ते णं तत्थ सिद्धा भवंति असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता णिट्ठियट्ठा णीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं कालं चिटुंति त्ति।
णिच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधण विमुक्का। सासयमव्वाबाहं चिटुंति सुही सुहं पत्ता॥१॥ ॥ पण्णवणाए भगवईए छत्तीसइमं समुग्घायपयं समत्तं॥
॥पण्णवणा सुत्तं समत्तं॥ . कठिन शब्दार्थ - जीवघणा - जीवघन-सघन आत्मप्रदेशों वाले, दंसणणाणोवउत्ता - दर्शनज्ञान उपयोग वाले, णिट्ठियट्ठा - निष्ठितार्थ, णीरया - नीरज, णिरेयणा - निष्कम्प, वितिमिरा - तिमिर से रहित, सासयं - शाश्वत, अणागयद्धं कालं - अनागत (भविष्य) काल में, अग्गिदड्डाणं - अग्नि से जले हुए, अंकुरुप्पत्ती - अंकुर की उत्पत्ति, जम्मुष्पत्ती - जन्म से उत्पत्ति, णिच्छिण्णसव्वदुक्खा - सर्व दुःखों से पार हो चुके, जाइजरामरणबंधणविमुक्का - जन्म, जरा, मृत्यु और बंधन से विमुक्त।
भावार्थ - वे सिद्ध वहाँ अशरीरी, जीवघन-सघन आत्म प्रदेशों वाले, दर्शन और ज्ञान में उपयुक्त निष्ठितार्थ, नीरज (कर्म रज से रहित), निष्कम्प, अज्ञान तिमिर से रहित और पूर्व शुद्ध होते हैं तथा शाश्वत भविष्य काल में रहते हैं।
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