Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 351
________________ ३३८ ******* प्रज्ञापना सूत्र प्रश्न - हे भगवन् ! वचन योग का व्यापार करता हुआ क्या सत्य वचन योग का व्यापार करता है, मृषा वचन योग का व्यापार करता है, सत्यमृषावचन योग का व्यापार करता है या असत्यामृषावचन योग का व्यापार करता है ? #========================HE I उत्तर - हे गौतम! वह सत्यवचन योग का व्यापार करता है, मृषा वचन योग का व्यापार नहीं करता, सत्यमृषा वचन योग का व्यापार नहीं करता किन्तु असत्यामृषा वचन योग का व्यापार करता है। काययोग का व्यापार करता हुआ केवली आता है, जाता है, ठहरता है, बैठता है, लेटता है, लांघता है, विशेष रूप से लांघता है या वापस लौटाये जाने वाले पीठ, पाट ( तख्ता) शय्या ( वसतिस्थान) तथा संस्तारक वापस लौटाता है । Jain Education International विवेचन - केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हुए सिद्ध, बुद्ध, मुक्त नहीं होते, निर्वाण को प्राप्त नहीं होते यावत् सभी दुःखों का अन्त नहीं करते किन्तु वे केवली समुद्घात से निवृत्त होते हैं और निवृत्त होकर मन योग, वचन योग और काययोग प्रवर्ताते हैं । मनयोग में सत्य मनोयोग और व्यवहार मनोयोग में प्रवर्ताते हैं । वचनयोग में सत्य वचन योग और व्यवहार वचन योग प्रवर्ताते हैं । काययोग ( औदारिक काययोग) प्रवर्ताते हुए आते जाते हैं, उठते बैठते हैं सोते हैं यावत् प्रतिहारी (पडिहारी) वापिस लौटाने योग्य पाट पाटले शय्या संस्तारक को वापिस लौटाते हैं अर्थात् केवली समुद्घात के बाद अंतर्मुहूर्त्त तक कुछ मिनटों तक योगों की प्रवृत्ति करने के बाद अयोगी बनते हैं। णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ जाव अंतं करेइ ? गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे । से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखिज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, तओ अनंतरं चणं बेइंदिस्स पज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखिज्जगुणपरिहीणं दोच्चं वइजोगं णिरुंभइ, तओ अणंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखिज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं णिरुंभइ, से णं एएणं उवाएणं - पढमं मणजोगं णिरुंभइ, मणजोगं णिरुंभित्ता वड्जोगं णिरुंभइ, वड्जोगं णिरुंभित्ता कायजोगं णिरुंभइ, कायजोगं णिरुंभित्ता जोगणिरोहं करेइ, जोगणिरोहं करेत्ता अजोगत्तं पाउणइ, अजोगत्तं पाडणित्ता ईसिं हस्स पंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखिज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसिं पडिवज्जइ, पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्म तीसे सेलेसिमद्धाए असंखिजाहिं गुणसेढीहिं असंखिजे कम्मखंधे खवयइ, खवइत्ता वेयणिज्जाऽऽउयणामगोत्ते इच्चेए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ, जुगवं खवेत्ता ओरालियतेयाक म्मगाई सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358