Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 349
________________ ३३६ प्रज्ञापना सूत्र **ccketesterocrickekaakaawwwseketakakakiralseksee taakakakakakak*. उत्तर - हे गौतम! वह मनोयोग का व्यापार नहीं करता, वचन योग का व्यापार नहीं करता किन्तु काययोग का व्यापार करता है। प्रश्न - हे भगवन्! काययोग का व्यापार करता हुआ क्या औदारिक काययोग का व्यापार करता है? औदारिक मिश्र शरीर काय योग का व्यापार करता है? क्या वैक्रिय शरीर काय योग का व्यापार करता है? क्या वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग का व्यापार करता है? आहारक शरीरकाय योग का व्यापार करता है ? आहारक मिश्र शरीरकाय योग का व्यापार करता है? क्या कार्मण शरीर काययोग का व्यापार करता है? उत्तर - हे गौतम! औदारिक शरीर काययोग का भी व्यापार करता है औदारिक मिश्र शरीर काययोग का भी व्यापार करता है और कार्मण शरीर काय योग का भी व्यापार करता है किन्तु वैक्रिय शरीर काय योग का व्यापार नहीं करता, वैक्रिय मिश्र शरीर काययोग का व्यापार नहीं करता, आहारक शरीर काय योग का व्यापार नहीं करता और आहारक मिश्र शरीर काय योग का व्यापार नहीं करता है। प्रथम और आठवें समय में औदारिक शरीर काय योग का व्यापार करता है। दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिक मिश्र शरीर काय योग का व्यापार करता है। तीसरे, चौथे और पांचवें समय में । कार्मण शरीर काय योग का व्यापार करता है। ... विवेचन - केवली समुद्घात में केवली भगवान् के मनयोग, वचनयोग का व्यापार नहीं होता केवल काययोग की प्रवृत्ति होती है। काय योग में भी औदारिक, औदारिक मिश्र और कार्मण काययोग इन तीन की प्रवृत्ति होती है शेष चार काय योग की प्रवृत्ति नहीं होती। पहले और आठवें समय में औदारिक काय योग प्रवर्तता है दूसरे छठे और सातवें समय * में औदारिक मिश्र काय योग प्रवर्तता है और तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मण काय योग प्रवर्तता है। यहाँ केवली समुद्घात के तीसरे, चौथे, पांचवें समय में कार्मण योग बताया गया है तथा इन तीन समयों में अनाहारकपना होता है ऐसा काय स्थिति पद में बताया है। छठे समय में औदारिक शरीर और कार्मण शरीर की सम्मिलित प्रवृत्ति होती है इसलिए उसे औदारिक मिश्र योग बताया है तथा आहारक भी बताया है इसी प्रकार सातवें समय में भी समझना चाहिये। इस आधार से केवली समुद्घात के तीन समयों (तीसरा, चौथा, पांचवां) में होने वाले कार्मण योग तथा सभी दण्डकों के अपर्याप्त अवस्था में विग्रह गति में होने वाले कार्मण योग को अनाहारक ही समझा जाता है। ___ * दूसरे और सातवें समय में औदारिक से औदारिक का मिश्र होता है तथा छठे समय में कार्मण व औदारिक का मिश्र होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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