Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 350
________________ अंतं करेइ ? छत्तीसवां समुद्घात पद - योग निरोध के बाद सिद्ध होने तक की स्थिति योग निरोध के बाद सिद्ध होने तक की स्थिति भंते! हा समुग्धायगए सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणं ३३७ गोयमा! णो इणट्ठे समट्ठे । से णं तओ पडिणियत्तइ पडिणियत्तित्ता तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ, वइजोगं पि जुंजइ, काययोगं पि जुंजइ । मणजोगं जुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुंजइ, मोसमणजोगं जुंजइ, सच्चामोसमणजोगं जुंजइ असच्चामोसमणजोगं जुंजइ ? गोयमा! सच्चमणजोगं जुंजइ, णो मोसमणजोगं जुंजइ णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमण जोगं पि जुंजइ । वइजोगं जुंजमाणे किं सच्चवइजोगं जुंजइ, मोसवइजोगं जुंजइ, सच्चामोसवइजोगं जुंजइ असच्चामोसवइजोगं जुंजइ ? ============************ गोयमा! सच्चवइजोगं जुंजइ, णो मोसवइजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुजइ असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ । कायजोगं जुंजाणे आगच्छेज वा गच्छेज वा चिद्वेज वा णिसीएज वा तुयट्टेज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पलंघेज्ज वा पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं • पच्चण्पिणेज्जा ॥ ७१३॥ कठिन शब्दार्थ पडिणियत्तइ - प्रतिनिवृत्त होता है, उल्लंघेज्ज - उल्लंघन करता है - लांघता है, पलंघेज्ज - प्रलंघन (अति विकट चरण न्यास) करता है, पच्चप्पिणेज्जा - वापस लौटाता है। Jain Education International भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तथारूप समुद्घात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाता है क्या वह सभी दुःखों का अंत कर देता है ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। पहले वह केवलि समुद्घात से प्रतिनिवृत्त होता है तत्पश्चात् वह मनोयोग का व्यापार करता है, वचन योग का व्यापार करता है और काययोग का भी व्यापार करता है । प्रश्न - हे भगवन्! मनोयोग का व्यापार करता हुआ क्या सत्यमनोयोग का व्यापार करता है मृषामनोयोग का व्यापार करता है, सत्यामृषा मनोयोग का व्यापार करता है या असत्यामृषा मनोयोग का व्यापार करता है ? उत्तर - हे गौतम! वह सत्यमनोयोग का व्यापार करता है, मृषामनोद्योग का व्यापार नहीं करता, सत्यामृषा मनोयोग का व्यापार नहीं करता किन्तु असत्यामृषा मनोयोग का व्यापार करता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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