Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 237
________________ २२४ 마마마마마마마마마 *************************** प्रज्ञापना सूत्र प्रश्न हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली इस रत्नप्रभा पृथ्वी को आकारों से यावत् प्रत्यावतारों से जिस समय जानते हैं उस समय नहीं देखते और जिस समय देखते हैं उस समय नहीं जानते हैं ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! जो साकार होता है वह ज्ञान होता है और जो अनाकार होता है वह दर्शन होता है इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है केवलज्ञानी जिस समय जानता है उस समय देखता नहीं यावत् जानता नहीं। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिये और इसी प्रकार सौधर्म कल्प यावत् अच्युत कल्प, ग्रैवेयक विमान, अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भार पृथ्वी, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशी स्कन्ध यातव् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के विषय में समझना चाहिये। विवेचन - छद्मस्थ जीव कर्म सहित होते हैं अतः उनको अनुक्रम से साकार और अनाकार उपयोग हो सकता है क्योंकि कर्मों से आवृत्त जीवों के एक उपयोग के समय दूसरा उपयोग घटित नहीं होता । अत: छद्मस्थ जिस समय जानता है उसी समय देखता नहीं है किन्तु केवलज्ञानी के तो चारों घाती कर्मों का क्षय हो चुका है अतः ज्ञान और दर्शन एक साथ होने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिये, इस आशंका से गौतम स्वामी ने यह प्रश्न पूछा कि क्या केवली रत्नप्रभा आदि को जिस समय जानते हैं : उसी समय देखते हैं अथवा जीव स्वभाव के कारण क्रम से जानते देखते हैं ? इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि - यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि केवली भगवान् का ज्ञान साकार अर्थात् विशेष का ग्राहक होता है जबकि उनका दर्शन अनाकार अर्थात् सामान्य का ग्राहक होता है अतः केवली भगवान् जब विशेष का ग्रहण करते हैं तब जानते हैं ऐसा कहा जाता है और जब सामान्य का ग्रहण करते हैं तब देखते हैं ऐसा कहा जाता है। इसलिए सिद्धान्त यह है कि जब ज्ञान होता है तब ज्ञान ही होता है और जब दर्शन होता है तब दर्शन ही होता है। ज्ञान और दर्शन छाया और धूप के समान साकार रूप और अनाकार रूप होने से परस्पर विरोधी हैं। ये दोनों एक साथ उपयुक्त नहीं रह सकते। अतएव केवली जिस समय जानते हैं उस समय देखते नहीं और जिस समय देखते हैं उस समय जानते नहीं । laloktejtk 'केवल ज्ञान केवल दर्शन उपयोग एक साथ में नहीं होते हैं' कारण केवलज्ञान साकारोपयोग होने से आकार आदि के द्वारा भेदाकार प्रतीति करता है और केवल दर्शन अनाकार उपयोग होने से आकार आदि के द्वारा भेदाकार प्रतीति नहीं कराकर एकाकार प्रतीति कराता है। भेदाकार प्रतीति और एकाकार प्रतीति दोनों भिन्न भिन्न होने से एक साथ नहीं होती है। इसलिए केवल ज्ञान - केवल दर्शन दोनों उपयोग एक साथ नहीं होते हैं। एकाकार प्रतीति जैसे गोत्व ( गायपना), गाड़ी आदि । भेदाकार प्रतीति-श्यामा गाय, बहुलागाय, गाड़ी के ८४ अवयव आदि । सातों नरक पृथ्वियों, देव विमानों, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, परमाणु, द्विप्रदेशी स्कन्ध से अनंतप्रदेशी स्कन्ध तक के विषय में भी इसी प्रकार युक्तिपूर्वक समझ लेना चाहिये । For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org

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