Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ ३२६ प्रज्ञापना सूत्र *====*=============================== के विषय में भी समझना चाहिये, विशेषता यह है कि लम्बाई में जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग . उत्कृष्ट संख्यात योजन जितना क्षेत्र एक दिशा में आपूर्ण और स्पृष्ट होता है। यह क्षेत्र कितने काल में पूर्ण एवं स्पृष्ट होता है ? इसके उत्तर में जीवपद के समान कहना चाहिये। जैसे नैरयिक का वैक्रिय समुद्घात के विषय में कथन किया है उसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में भी समझना चाहिये । विशेषता यह है कि एक दिशा में या विदिशा में उतना क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार के विषय में भी समझ लेना चाहिये । वायुकायिक के वैक्रिय समुद्घात का कथन समुच्चय जीव पद के समान समझना चाहिये विशेषता है कि एक दिशा में ही उक्त क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच का संपूर्ण वर्णन नैरयिक के समान समझना चाहिये। मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक की सम्पूर्ण वक्तव्यता असुरकुमार के समान कहनी चाहिये। विवेचन - नैरयिक और तिर्यंच पंचेन्द्रिय में वैक्रिय समुद्घात का वर्णन समुच्चय जीव की तरह कह देना चाहिये किन्तु इतना अंतर है कि लम्बाई में जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट संख्यात योजन तथा एक दिशा में कहना चाहिये । असुरकुमार आदि भवनपतियों, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों तथा मनुष्य में भी समुच्चय जीव की तरह कहना चाहिये किन्तु इतनी विशेषता है कि लम्बाई में जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग उत्कृष्ट संख्यात योजन तथा एक दिशा या विदिशा कहना चाहिये । वायुकाय समुच्चय जीव की तरह कहना किन्तु इसमें एक दिशा कहना चाहिये। Jain Education International जीवे णं भंते! तेयग समुग्धाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवइए खेत्ते अप्फुण्णे, केवइए खेत्ते फुडे ? एवं जहेव वेडव्विए समुग्धाए तहेव णवरं आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिज्जइभागं, सेसं तं चेव, एवं जाव वेमणियस्स णवरं पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स एगदिसिं एवइए खेत्ते अप्फुण्णे एवइए खेत्ते फुडे ॥ ७०५ ॥ - भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! तैजस समुद्घात से समवहत जीव समवहत होकर जिन पुद्गलों को बाहर निकालता है हे भगवन् ! उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण और कितना क्षेत्र स्पृष्ट होता है ? उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार वैक्रिय समुद्घात के विषय में कहा है उसी प्रकार तैजस समुद्घात के विषय में भी कहना चाहिये। विशेषता यह है कि लम्बाई में जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है। शेष सारा वर्णन वैक्रिय समुद्घात के समान है। इसी For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358