Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 341
________________ ३२८ प्रज्ञापना सूत्र *NEERENCEkatakaEEEEEEEEEkatretstalksettesakakkar sakateketatatateElatestatuterteekETERestateEEEEEEEEEEktartelect करते हैं तब विष्कंभ और बाहल्य की अपेक्षा शरीर प्रमाण तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट संख्यात योजन क्षेत्र को पुद्गलों से एक दिशा में आपूर्ण और स्पृष्ट करते हैं विदिशा में नहीं। विदिशा में जो आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है उसके लिए दूसरे प्रयत्न की आवश्यकता होती है किन्तु आहारक लब्धि के धारक मुनि इतने गंभीर होते हैं कि उन्हें वैसा कोई प्रयोजन नहीं होता अत: वे दूसरा प्रयत्न नहीं करते। आहारक समुद्घात को प्राप्त कोई जीव काल करता है और विग्रह गति से उत्पन्न होता है तो विग्रहगति उत्कृष्ट तीन समय की होती है। ते णं भंते! पोग्गला णिच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणंति जाव उद्दवेंति तेणं भंते! जीवे कइकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। ते णं भंते! जीवा ताओ जीवाओ कइ किरिया? गोयमा! एवं चेव। से णं भंते! जीवे ते य जीवा अण्णेसिं जीवाणं परंपराघाएणं कइ किरिया? गोयमा! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंच किरिया वि, एवं मणूसे वि॥७०७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बाहर निकाले हुए वे पुद्गल जिन प्राण, भूत जीव और सत्त्वों का घात करते हैं या उन्हें प्राण रहित कर देते हैं हे भगवन् ! उनसे जीव को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? । उत्तर - हे गौतम! वह समुद्घात करने वाला जीव कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है। प्रश्न - हे भगवन् ! वे आहारक समुद्घात द्वारा बाहर निकाले हुए पुद्गलों से आपूर्ण स्पृष्ट हुए जीव आहारक समुद्घात करने वाले जीव के निमित्त से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! इसी प्रकार समझना चाहिये। प्रश्न - हे भगवन्! आहारक समुद्घात करने वाला वह जीव तथा आहारक समुद्घात के पुद्गलों से स्पृष्ट वे जीव, अन्य जीवों का परम्परा से घात करने के कारण कितनी क्रियाओं वाले होते हैं? उत्तर - हे गौतम! वे तीन क्रियाओं वाले, चार क्रियाओं वाले अथवा पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं। इसी प्रकार मनुष्य के आहारक समुद्घात के विषय में भी समझ लेना चाहिये। । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आहारक समुद्घात से समवहत जीवादि को लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा की गयी है जिसका सारा वर्णन वैक्रिय समुद्घात के समान समझ लेना चाहिये। उ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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