Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 343
________________ ३३० Societ lete प्रज्ञापना सूत्र jalelalalellistolsteale अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । देवे णं महिड्डिए जाव महासोक्खे एगं महं सविलेवणं गंधसमुग्गयं गहाय तं अवदालेइ, तं महं एगं सविलेवण गंधसमुग्गयं अवदालइत्ता इणामेव कट्टु केवलकप्पं जंबूद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवाएहिं तिसतक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छिजा गोमा ! से केवलकप्पे जंबूद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ? Jain Education International हंता फुडे, छउमत्थे णं गोयमा ! मणूसे तेसिं घाणपुग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ? भगवं! णो इणट्टे समट्ठे, से एएणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- 'छउमत्थे णं मणूसे तेसिं णिज्जरा पोग्गलाणं णो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ, एसुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो । सव्वलोगं पि यं णं फुसित्ताणं चिट्ठति ॥ ७०९ ॥ !! , कठिन शब्दार्थ - वण्णेणं वर्ण ग्राहक चक्षुरिन्द्रिय से घाणेणं- गंध ग्राहक घ्राणेन्द्रिय से, रसेणं - रस ग्राहक रसनेन्द्रिय से फासेणं स्पर्श ग्राहक स्पर्शनेन्द्रिय से, सव्वब्धंतराए - सबके बीच में, सव्वखुड्डाए - सबसे छोटे, तेला पूयसंठाणसंठिए तेल के मालपूए के समान आकार का, रहचक्कवालसंठाण संठिए - रथ के चक्र के समान गोलाकार, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए कमल के कर्णिका के आकार का, वट्टे वृत-गोल, परिक्खेवेणं परिधि से युक्त, केवलकप्पं सम्पूर्ण, अच्छराणिवाएहिं - चुटकियां बजा कर, अणुपरियट्टित्ता चक्कर लगा कर । - भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा पुद्गलों के चक्षु इन्द्रिय से वर्ण को, घ्राणेन्द्रिय से गंधं को, रसनेन्द्रिय से रस को अथवा स्पर्शनेन्द्रिय से स्पर्श को जानता देखता है ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। - ===================== - - For Personal & Private Use Only प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि छद्मस्थ मनुष्य उन निर्जरा पुद्गलों के चक्षुइन्द्रिय से वर्ण को, घ्राणेन्द्रिय से गंध को, रसनेन्द्रिय से रस को, स्पर्शनेन्द्रिय से स्पर्श को किंचित् भी नहीं जानता देखता ? - उत्तर - हे गौतम! यह जंबूद्दीप नाम का द्वीप सभी द्वीप समुद्रों के बीच में है सबसे छोटा है, वृताकार (गोल) है, तेल के पूए के आकार का है, रथ के चक्र ( पहिये) के आकार सा गोल है। लम्बाई और चौड़ाई में एक लाख योजन है। तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस www.jalnelibrary.org

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