Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
पना सत्र
कठिन शब्दार्थ - ओही - अवधि, भवपच्चइया - भवप्रत्ययिक, खओवसमिया - क्षायोपशमिक। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. भवप्रत्ययिक और २. क्षायोपशमिक। दो को भवप्रत्ययिक अवधि होता है, यथा - देवों और नैरयिकों को। दो को क्षायोपशमिक अवधि होता है। यथा - मनुष्यों और तिर्यंच पंचेन्द्रियों को।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अवधिज्ञान का स्वरूप और उसके भेद बतलाये गये हैं जो इस प्रकार है-इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना आत्मा को रूपी पदार्थों का जो मर्यादित ज्ञान होता है उसको अवधिज्ञान कहते हैं। अवधिज्ञान के दो भेद हैं -
१. भवप्रत्ययिक - 'भवन्ति अस्मिन्' जिसमें कर्मों के वशीभूत होकर प्राणी उत्पन्न होते हैं वह नैरयिक आदि जन्म भव कहलाता है और भव ही जिसका कारण हो वह भवप्रत्ययिक है। भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान नैरयिकों और देवों को होता है।
शंका - अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव में है और नैरयिक आदि भव औदयिक भाव में हैं तो उन्हें भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान कैसे होता है?
. समाधान- भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान भी परमार्थ से क्षायोपशमिक ही है परन्तु वह क्षयोपशम देव और नैरयिक भव में पक्षियों के आकाश में गमन करने की लब्धि की तरह अवश्य होता है अतः नैरयिकों और देवों का अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक कहलाता है। इस विषय में नंदी सूत्र के चूर्णिकार भी कहते हैं - ___ "नणु ओही खओवसमिओ चेव, नारगादि भवो से उदइए भावे, तओ कहं भवपच्चइओ भण्णइ? उच्चते, सो वि खओवसमिओ चेव, किन्तुं सो खओवसमो देवनारगभवेसु अवस्सं भवइ, को दिलुतो? पक्खीणं आगासगमणं व तओ भवपच्चइओ भण्णइ"
२. क्षायोपशमिक - जिस अवधिज्ञान में क्षयोपशम ही मुख्य कारण हो वह अवधिज्ञान क्षायोपशमिक कहलाता है। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्यों और तिर्यंच पंचेन्द्रियों को होता है। सभी मनुष्यों और तिर्यंच पंचेन्द्रियों को यह अवधिज्ञान नहीं होता किन्तु जो मनुष्य या तिर्यंच अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम करते हैं यानी अवधिज्ञानावरणीय कर्म के उदयावलिका में प्रविष्ट अंश का वेदन कर क्षय करते हैं और जो उदयावलिका को प्राप्त नहीं है उसके विपाकोदय को उपशम कर देते हैं उन्हें ही क्षायोपशमिक अवधिज्ञान होता है।
२. विषय द्वार णेरइया णं भंते! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति?
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