Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र -+--++-KIEH-NAGEEK-EASKEH-NAEASTEAKEH-NANANASAKIEH-NAN
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हुए भूतकाल में अनन्त वेदना समुद्घात हुए हैं क्योंकि अनेक नैररिकों को अव्यवहार राशि से निकले अनंतकाल व्यतीत हो चुका है। भविष्यकाल म होने वाले वेदना समुद्घात भी अनन्त हैं क्योंकि वर्तमान में जो नैरयिक हैं उनमें से बहुत से नैरयिक अनन्तबार पुनः नरक में उत्पन्न होंगे। नैरयिकों के नैयिक पर्याय में वेदना समुद्घात कहे हैं उसी प्रकार असुरकुमार आदि यावत् वैमानिक पर्याय में नैरयिकों के अतीत और अनागत समुद्घात कह देने चाहिये।
नैरयिकों के समान ही वैमानिक तक के सभी जीवों के स्व स्थान में और परस्थान में अतीत और अनागत वेदना समुद्घात कहने चाहिये। वेदना समुद्घात के समान ही अतीत और अनागत कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात और तैजस समुद्घात चौबीस दण्डकों में समझना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि उपयोग लगा कर जिन जीवो में जो समुद्घातं संभव है उनहीं का कथन करना चाहिये किन्तु जिन जीवों में जो समुद्घात नहीं है उनमें वे समुद्घात नहीं कहने चाहिये। जैसे - नैरयिक आदि या असुरकुमार आदि में वैक्रिय और तैजस समुद्घात संभव है उनका कथन करना जबकि शेष पृथ्वीकाय आदि स्थानों में उनका निषेध करना क्योंकि वे उनमें संभव नहीं है।
णेरइया णं भंते! गैरइयत्ते केवइया आहारग समुग्घाया अतीता? गोयमा! णथि। केवइया पुरेक्खडा?
गोयमा! णत्थि, एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं मणूसत्ते अतीता असंखिजा पुरेक्खडा असंखिजा, एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं मणूसत्ते अतीता सिय संखिज्जा सिय असंखिज्जा एवं पुरेक्खडा वि।सेसा सव्वे जहा णेरइया, एवं एए चउवीसं चउवीसा दंडगा॥६९५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते हुए कितने आहारक समुद्घात अतीत काल में हुए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते हुए भूतकाल में एक भी आहारक समुद्घात नहीं हुआ है।
प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते हुए भविष्यकाल में कितने आहारक समुद्घात होंगे?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में भविष्यकाल में आहारक समुद्घात नहीं होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय में अतीत और अनागत आहारक समुद्घात का कथन करना चाहिये। विशेषता यह है कि मनुष्य पर्याय में असंख्यात अतीत और असंख्यात अनागत आहारक समुद्घात होते
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