Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 326
________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - चौबीस दण्डकों में कषाय समुद्घात ३१३ विवेचन - बहुवचन की अपेक्षा नैरयिकों से लगा कर वैमानिकों तक के अतीत और अनागत क्रोध आदि समुद्घात अनन्त हैं। भविष्यकाल में भी अनंत कषाय समुद्घात इसलिए कहे हैं कि प्रश्न के समय बहुत से नैरयिक ऐसे हैं जो अनन्तकाल तक संसार में रहेंगे। इस प्रकार सभी नैरयिकों के चौबीस दण्डकों की अपेक्षा २४४४-९६ आलापक होते हैं। एगमेगस्स णं भंते! जेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया कोहसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अणंता। एवं जहा वेयणा समुग्घाओ भणिओ तहा कोह समुग्घाओ वि भाणियव्वो णिरवसेसं जाव वेमाणियत्ते। माणसमुग्घाए मायासमुग्घाए वि णिरवसेसं जहा मारणंतिय समुग्याए, लोह समुग्धाओ जहा कसाय समुग्घाओ, णवरं सव्वजीवा असुराइणेरइएस लोह कसाएणं एगुत्तरियाए णेयव्वा॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में कितने क्रोध समुद्घात अतीतकाल में हुए हैं? .. उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अतीत काल में अनन्त क्रोध समुद्घात हुए हैं। जिस प्रकार वेदना समुद्घात का कथन किया है उसी प्रकार यहां क्रोध समुद्घात का भी सम्पूर्ण रूप से यावत् वैमानिक पर्याय तक कथन करना चाहिये। इसी प्रकार मान समुद्घात और माया समुद्घात के विषय में सारा वर्णन मारणांतिक समुद्घात के समान कहना चाहिये। लोभ समुद्घात की वक्तव्यता कषाय समुद्घात के समान कहनी चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि असुरकुमार आदि सभी जीवों का नैरयिक पर्याय में लोभ कषाय समुद्वात की प्ररूपणा एक से लेकर करनी चाहिये। .. विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि नैरयिक पर्याय को प्राप्त एक-एक नैरयिक ने सर्व संख्या से भूतकाल में अनंत क्रोध समुद्घात किये हैं क्योंकि उसने नरक गति अनंत बार प्राप्त की है और एक नरक भव में जघन्य रूप से संख्यात क्रोध समुद्घात होते हैं। जिस प्रकार वेदना समुद्घात के विषय में कहा है उसी प्रकार यावत् वैमानिक के वैमानिकत्व तक चौबीस दण्डकों में निरवशेष-समस्त रूप से कह देना चाहिये। जिस प्रकार मारणांतिक समुद्घात के विषय में पूर्व में सूत्र कहे हैं उसी प्रकार मान समुद्घात और माया समुद्घात के विषय में भी समझ लेना चाहिये अर्थात् मान समुद्घात के चौबीस सूत्र चौबीस दंडक के क्रम से और माया समुद्घात के चौबीस सूत्र चौबीस दंडक के क्रम से कह देना चाहिये। जिस प्रकार कषाय समुद्घात कहा उसी प्रकार लोभ समुद्घात भी कहना चाहिये परन्तु असुरकुमार आदि सर्व जीव नैरयिकों में एकोत्तर रूप से-एक से लगा कर अनन्त समुद्घात समझने चाहिये। अतिशय दुःख की वेदना से पीड़ित हमेशा उद्वेग को प्राप्त नैरयिकों में प्रायः लोभ समुद्घात असंभव है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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