Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 329
________________ ३१६ प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े नैरयिक लोभ समुद्घात से समवहत हैं उनसे माया समुद्घात समवहत संख्यातगुणा, उनसे मान समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा, उनसे क्रोध समुद्घात से समवहत संख्यात गुणा और उनसे भी समुद्घात से रहित नैरयिक संख्यातगुणा हैं । विवेचन - नैरयिकों में लोभ समुद्घात वाले सबसे कम हैं क्योंकि नैरयिकों को इष्ट वस्तुं के संयोग का अभाव होने से प्रायः लोभ समुद्घात नहीं होता और होती भी है तो बहुत कम होता है । उनसे माया समुद्घात, मान समुद्घात, क्रोध समुद्घात और समुद्घात से रहित नैरयिक उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अधिक हैं । असुरकुमाराणं पुच्छा ? गोयमा! सव्वत्थोवा असुरकुमारा कोहसमुग्धाएणं समोहया, माणसमुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, माया समुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, लोभ समुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, असमोहया संखिज्जगुणा, एवं सव्वदेवा जाव वेमाणिया । - भावार्थ - - प्रश्न हे भगवन्! क्रोध आदि से समवहत और असमवहत असुरकुमारों में कौन किन से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े क्रोध समुद्घात से समवहत असुरकुमार हैं, उनसे मान समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा हैं, उनसे माया समुद्घात से समवहत संख्यातगुणा हैं और उनसे लोभसमुद्घात से समवहत असुरकुमार संख्यातगुणा है उनसे भी असमवहत असुरकुमार संख्यातगुणा हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक सभी देवों के विषय में समझ लेना चाहिए । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में देवों में कषाय समुद्घात का अल्पबहुत्व कहा गया है जो इस प्रका है - असुरकुमार आदि देवों में सबसे थोड़े क्रोध समुद्घात वाले हैं, उनसे मान समुद्घात वाले संख्यात गुणा हैं उनसे माया समुद्घात वाले संख्यात गुणा हैं, उनसे लोभ समुद्घात वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि देवों में स्वभावत: लोभ की प्रचुरता होती है। उनसे भी समुद्घात से रहित असुरकुमार देव संख्यातगुणा हैं। असुरकुमार के समान ही शेष सभी देवों का अल्प बहुत्व भी समझ लेना चाहिये । पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? Jain Education International गगनक गोयमा! सव्वत्थोवा पुढवीकाइया माणसमुग्धाएणं समोहया, कोहसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखिज्जगुणा । एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, मणुस्सा जहा जीवा, णवरं माणसमुग्धाएणं समोहया असंखिज्जगुणा ॥ ७०० ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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