Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छत्तीसवां समुद्घात पद - चौबीस दण्डकों में छाद्मस्थिक समुद्घात
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उत्तर - हे गौतम! असुरकुमारों में पांच छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात ४. वैक्रिय समुद्घात और ५. तैजस समुद्घात।
प्रश्न - हे भगवन्! एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में कितने छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में तीन समुद्घात कहे गये हैं। यथा - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात और ३. मारणांतिक समुद्घात। किन्तु वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गये हैं जो इस प्रकार हैं - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात और ४. वैक्रिय समुद्घात।
प्रश्न - हे भगवन्! पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों में कितने छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में पांच छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं। यथा - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात ४. वैक्रिय समुद्घात और ५. तैजस समुद्घात।
प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्यों में कितने छाद्यस्थिक समुद्घात कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों में छह छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात. ४. वैक्रिय समुद्घात ५. तैजस समुद्घात और ६. आहारक समुद्घात।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में पाये जाने वाले छाद्मस्थिक समुद्घात की प्ररूपणा की गयी है। नैरयिकों में तेजोलब्धि और आहारक लब्धि का अभाव होने से तैजस समुद्घात
और आहारक समुद्घात को छोड़ शेष ४ छाद्मस्थिक समुद्घात होते हैं। असुरकुमार आदि सभी देवों में आहारक समुद्घात को छोड़ कर शेष पांच समुद्घात पाये जाते हैं क्योंकि उनमें तैजोलब्धि होने से तैजस समुद्घात तो संभव है किन्तु आहारक समुद्घात संभव नहीं है क्योंकि देवों में चौदह पूर्वो का ज्ञान नहीं होता है अतः उनकी आहारक लब्धि नहीं होती है। वायुकाय को छोड़ कर शेष एकेन्द्रिय जीवों और विकलेन्द्रियों में प्रथम के तीन-वेदना, कषाय और मारणांतिक समुद्घात होते हैं। वायुकायिक जीवों में ये तीन समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात सरित कुल चार समुद्घात पाये जाते हैं क्योंकि बादर पर्याप्त वायुकायिकों में वैक्रिय लब्धि संभव होने से उनमें वैक्रिय समुद्घात होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में आहारकलब्धि संभव नहीं होने से आहारक समुद्घात को छोड़ शेष पांच छामंस्थिक समुद्घात पाये जाते हैं। मनुष्यों में छहों छाद्मस्थिक समुद्घात होते हैं क्योंकि मनुष्यों में सर्वभाव संभव है।
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