Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 330
________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - छाद्मस्थिक समुद्घात . ३१७ HHHHHHHHHH भावार्थ - प्रश्न - पृथ्वीकायिकों के संबंध में पृच्छा? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े मान समुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक हैं, उनसे क्रोध समुद्घात से समवहत विशेषाधिक, उनसे माया समुद्घात से समवहत विशेषाधिक और उनसे लोभ समुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं तथा उनसे भी असमवहत पृथ्वीकायिक असंख्यातगुणा हैं। इसी प्रकार यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों के अल्पबहुत्व के विषय में समझना चाहिये। मनुष्यों के अल्प बहुत्व की वक्तव्यता समुच्चय जीवों के समान है किन्तु विशेषता यह है कि मानसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं। विवेचन - पृथ्वीकायिकों में मान समुद्घात वाले सबसे थोड़े हैं, उनसे क्रोध समुद्घात वाले विशेषाधिक, उनसे माया समुद्घात वाले विशेषाधिक और उनसे लोभ समुद्घात वाले विशेषाधिक हैं उनसे भी समुद्घात रहित पृथ्वीकायिक जीव संख्यात गुणा हैं। पृथ्वीकायिकों की अल्प बहुत्व के समान शेष एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों एवं तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अल्प बहुत्व भी समझ लेनी चाहिये। मनुष्यों की अल्प बहुत्व समुच्चय जीवों के समान समझनी चाहिये किन्तु उसमें विशेषता यह है कि अकषाय समुद्घात (कषाय समुद्घात से रहित) वाले मनुष्यों से भी मान समुद्घात वाले मनुष्य असंख्यात गुणा कहने चाहिये क्योंकि मनुष्यों में मान की प्रचुरता पायी जाती है। . .अकषाय समुद्घात में तो मात्र वीतरागी मनुष्यों का ही ग्रहण हुआ है। मान आदि कषायों में सम्मूछिम मनुष्यों का भी ग्रहण होता है अतः अकषाय समुद्घात वालों से मान समुद्घात वाले मनुष्य असंख्यात गुणे बताये हैं। इसके बाद क्रमशः क्रोध, माया, लोभ समुद्घात में वर्तने वाले मनुष्य अधिक-अधिक होने से विशेषाधिक बताये गये हैं। छाद्मस्थिक समुद्घात .. कइ णं भंते! छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता? गोयमा! छ छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणासमुग्घाए, कसाय समुग्घाए, मारणंतिय समुग्घाए, वेउव्विय समुग्घाए, तेयग समुग्घाए, आहारग समुग्घाए। कठिन शब्दार्थ - छाउमत्थिया - छाद्मस्थिक। 'भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! छाद्मस्थिक समुद्घात कितने कहे गये हैं ? .. उत्तर - हे गौतम! छाद्मस्थिक समुद्घात छह कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात ४. वैक्रिय समुद्घात ५. तैजस समुद्घात और ६. आहारक समुद्घात। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358