Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 335
________________ ३२२ jottl प्रज्ञापना सूत्र #EEEEEEEEEE प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव वेदना समुद्घात वाले उस जीव के निमित्त से कितनी क्रिया वाले होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! वह जीव और वे जीव, अन्य जीवों का परम्परा से घात करने से कितनी क्रिया वाले होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे तीन क्रिया वाले भी होते हैं, चार क्रिया वाले भी होते हैं और पांच क्रिया वाले भी होते हैं। विवेचन - वेदना समुद्घात करने वाला जीव वेदना समुद्घात द्वारा जिन पुद्गलों को अपने शरीर से बाहर निकालता है उन पुद्गलों से प्राण - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय जीव, भूत - वनस्पतिकायिक जीव, जीव - पंचेन्द्रिय प्राणी तथा सत्त्व - पृथ्वीकायिक आदि जीवों का हनन आदि होने के कारण वेदना समुद्घात करने वाले जीव को कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पांच क्रियाएं लगती हैं अर्थात् जब वह किसी जीव को परिताप आदि नहीं पहुँचाता है तब तीन क्रिया वाला होता है, जब किसी जीव को परिताप आदि पहुँचाता है तो चार क्रियाओं वाला होता है और जब किन्हीं जीवों का घात करता है तो पांच क्रियाओं वाला होता है । ', . उन जीवों को भी वेदना समुद्घात करने वाले जीव की अपेक्षा कभी तीन, कभी चार और कभी पांच क्रियाएं लगती है। जैसे एक पुरुष को बिच्छू सर्प आदि ने काट खाया और इस कारण पुरुष ने वेदना समुद्घात की तो बिच्छू सर्प आदि को भी कभी तीन, कभी चार और कभी पांच क्रियाएं लगती हैं। वेदना समुद्घात करने वाला जीव और वेदना समुद्घात के पुद्गलों से स्पृष्ट जीव द्वारा परम्परा से अन्य जीवों की घात होती है उससे वेदना समुद्घात करने वाले जीव को तथा वेदना समुद्घात के पुद्गलों से स्पृष्ट जीवों को कभी तीन, कभी चार और कभी पांच क्रियाएं लगती हैं। इणं भंते! वेणा समुग्धाएणं समोहए एवं जहेव जीवे, णवरं णेरइयाभिलावो, एवं णिरवसेसं जाव वेमाणिए। एवं कसायसमुग्धाओ वि भाणियव्वो । भावार्थ - हे भगवन्! वेदना समुद्घात से समवहत हुआ नैरयिक इत्यादि जिस प्रकार जीव के विषय में कहा है उसी प्रकार कह देना चाहिये किन्तु इतनी विशेषता है कि नैरयिक के संबंध में पाठ कहना चाहिये । इसी प्रकार सम्पूर्ण वक्तव्यता वैमानिक तक कह देनी चाहिये । वेदना समुद्घात के समान कषाय समुद्घात के विषय में भी समझ लेना चाहिये । विवेचन - वेदना समुद्घात के विषय में जिस प्रकार समुच्चय जीव संबंधी वक्तव्यता कही है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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