Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ ३१४ प्रज्ञापना सूत्र ooooocce णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया कोहसमुग्धाया अनीता ? गोयमा ! अनंता । केवड्या पुरेक्खडा ? गोयमा! अनंता, एवं जाव वेमाणियत्ते, एवं सट्ठाण परट्ठाणेसु सव्वत्थ भाणियव्वा, सव्वजीवाणं चत्तारि वि समुग्धाया जाव लोहसमुग्धाओ जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते ॥६९९॥ =================SE:EE: भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में कितने क्रोध समुद्घात अतीत (भूतकाल में) हुए हैं? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अतीतकाल में अनन्त क्रोध समुद्घात हुए हैं। प्रश्न - हे 'भगवन् ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अनागत काल में कितने क्रोध समुद्घात होंगे ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में भविष्यकाल में अनन्त क्रोध समुद्घात होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय तक कह देना चाहिये। इसी प्रकार स्व स्थान पर स्थानों में सर्वत्र क्रोध समुद्घात से लेकर यावत् लोभ समुद्घात तक यावत् वैमानिकों के वैमानिक पर्याय में रहते हुए सभी जीवों के चारों समुद्घात कह देने चाहिये । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकों संबंधी नैरयिक आदि स्व पर्यायों और परपर्यायों में बहुवचन की अपेक्षा से क्रोध आदि चारों समुद्घातों का अतीत और अनागत काल की अपेक्षा निरूपण किया गया है। Jain Education International एएसि णं भंते! जीवाणं कोहसमुग्धाएणं माणसमुग्धाएणं मायासमुग्धाएणं लोभसमुग्धाएण य समोहयाणं अकसायसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पवा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसायसमुग्धाएणं समोहया, माणसमुग्धाएणं समोहया अनंतगुणा, कोह समुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, माया समुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभ समुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखिज्जगुणा । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्रोध समुद्घात से, मान समुद्घात से, माया समुद्घात से और लोभ समुद्घात से तथा अकषाय समुद्घात से समवहत और असमवहत जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अकषाय समुद्घात (केवली समुद्घात वाले तथा कषाय से रहित For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358