Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 325
________________ ३१२ प्रज्ञापना सूत्र 科HENHHHHHHKBN4HANEIGHAIREFEIFFFFFICIENNHEMEHEHER-HA3年 中 उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के भूतकाल में अनन्त क्रोध समुद्घात हुए हैं। प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के पुरस्कृत (भविष्यकाल में) कितने क्रोध समुद्घात होंगे? उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के भविष्यकाल में किसी के क्रोध समुद्घात होगा किसी के नहीं होगा, जिसके होगा उसके जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक समझना चाहिये। इसी प्रकार यावत् लोभ समुद्घात तक नैरयिक से लेकर वैमानिक तक कथन कर देना चाहिये। इस प्रकार ये चार दण्डक हुए। .. विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डक के क्रम से वैमानिक पर्यन्त एक एक नैरयिक आदि की कषाय समुद्घात के विषय में वक्तव्यता कही है। एक-एक नैरयिक के अतीत काल में अनंत क्रोध : समुद्घात हुए हैं। भविष्य काल की अपेक्षा किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जो नैरयिक : नरकभव के अंतिम समय में वर्तमान है और स्वभाव से ही अल्पकषायी है वह कषाय समुद्घात किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त होकर नरक से निकल कर मनुष्य भव में उत्पन्न होने वाला है और कषाय समुद्घान किये बिना ही सिद्ध हो जायगा, उस के एक भी कषाय समुद्घात भविष्य में नहीं होगा। जिसके भविष्य में कषाय समुद्घात होंगे उसके जघन्य एक, दो या तीन होंगे और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात और अनन्त होंगे। संख्यात काल तक संसार में रहने वाले के संख्यात, असंख्यात काल तक संसार में रहने वाले के असंख्यात और अनंतकाल तक संसार में रहने वाले के अनंत कषाय समुद्घात भविष्यकाल में होंगे। इस प्रकार एक वचन की अपेक्षा चौबीस दण्डकों के २४४४-९६ आलापक हुए। णेरड्या णं भंते! केवइया कोहसमुग्घाया अतीता? गोयमा! अणंता। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! अणंता। एवं जाव वेमाणियाणं, एवं जाव लोह समुग्घाए एवं एए वि चत्तारि दंडगा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने क्रोध समुद्घात अतीत काल में हुए हैं? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अतीतकाल में अनंत क्रोध समुद्घात हुए हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के पुरस्कृत (भविष्यकाल में) कितने क्रोध समुद्घात होंगे? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अनागत क्रोध समुद्घात अनंत होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिये। इसी प्रकार यावत् लोभ समुद्घात तक कह देना चाहिये। इस प्रकार ये चार दंडक हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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